US-China ट्रेड वार के बीच पीयूष गोयल ने संभाला वाणिज्य मंत्रालय, आसान नहीं है राह

Edited By shukdev,Updated: 31 May, 2019 06:27 PM

piyush goyal takes over as the minister of commerce and industry

वैश्विक अर्थव्यवस्था में 40 प्रतिशत की दखल रखनेवाले अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध ने दोनों देशों के चार दशक पुराने रिश्ते को खत्म होने के कगार पर हैं। कुछ विशेषज्ञ इसे आर्थिक शीत युद्ध की आहट बता रहे हैं तो कुछ का ऐसा भी कहना है कि यह...

नई दिल्ली: वैश्विक अर्थव्यवस्था में 40 प्रतिशत की दखल रखनेवाले अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध ने दोनों देशों के चार दशक पुराने रिश्ते को खत्म होने के कगार पर हैं। कुछ विशेषज्ञ इसे आर्थिक शीत युद्ध की आहट बता रहे हैं तो कुछ का ऐसा भी कहना है कि यह ट्रेड वार अगले बीस वर्षों तक जारी रह सकता है। इन दोनों देशों के व्यापार युद्ध ने भारत की भी चिंता बढ़ा दी है। पीयूष गोयल ने शुक्रवार को केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री (Union Commerce and Industry Minister) का पदभार ग्रहण कर लिया। उन्होंने ऐसे समय में यह पद संभाला है जब व्यापारिक मोर्चे पर वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद बढ़ रहा है और भारत का निर्यात बढ़ाने की जरूरत है। गोयल ने कहा, 'मुझमें विश्वास जताने और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी देने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।' पीयूष गोयल को रेल मंत्री भी बनाया गया है।

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निर्यात को आगे बढ़ाने की होगी चुनौती
देश के नए वाणिज्य मंत्री के समक्ष ऐसे समय में देश के निर्यात को आगे बढ़ाने की चुनौती होगी जब दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका एवं चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है और अन्य देश संरक्षणवादी कदम उठा रहे हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में देश का वस्तु निर्यात नौ प्रतिशत बढ़कर 331 अरब डॉलर हो गया। लेकिन भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह में वित्त वर्ष 2018-19 में पिछले छह साल में पहली बार कमी देखने को मिली। यह एक प्रतिशत की कमी के साथ 44.37 अरब डॉलर रह गया।

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इसके अलावा मंत्रालय कुछ नीतियों पर भी काम कर रहा है। इनमें नई औद्योगिक नीति, नई ई-वाणिज्य नीति, राष्ट्रीय लाजिस्टिक नीति और पांच साल के लिए विदेश व्यापार नीति शामिल हैं। इसके साथ ही नए मंत्री के पास मुक्त व्यापार समझौता क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से जुड़ी बातचीत को निर्णायक स्तर तक ले जाने की जिम्मेदारी होगी। उन्हें कारोबार सुगमता सूचकांक में भारत की स्थिति को और बेहतर बनाने एवं विशेष आर्थिक क्षेत्रों को नये सिरे से सक्रिय बनाने के लिए भी काम करना होगा।

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ईरान पर प्रतिबंध  के बाद भारत की बढ़ी मुश्किलें

भारत की सबसे बड़ी चिंता कच्‍चे तेल को लेकर भी बनी हुई है। दरअसल, अमेरिका ईरान से तेल खरीद को लेकर प्रतिबंध लगा चुका है। ऐसे में भारत का ईरान से तेल खरीदना नामुकिन है। लिहाजा भारत की निगाहें सऊदी अरब, इराक और अमेरिका पर लगी थीं। अमेरिका खुद भी चाहता है कि भारत से तेल का सौदा हो। लेकिन, अमेरिका ने भारत को सस्‍ती दर पर तेल बेचने से हाथ खींच लिए हैं। दिल्ली आए अमेरिकी वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस ने कहा है कि अमेरिका भारत को सस्ते तेल की बिक्री का भरोसा नहीं दे सकता। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि अमेरिकी कारोबार निजी कंपनियों के पास है और इसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती है। 

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