1.3 अरब भारतीयों ने कानून के हर निर्णय का खुले दिल से किया स्वागत: PM मोदी

Edited By vasudha,Updated: 22 Feb, 2020 04:49 PM

pm modi says law tops the country

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा देश को न्यायपालिका पर अटूट विश्वाश है। पीएम अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 को संबोधित कर रहे हैंं। इस दौरान उन्होंने कहा कि देश में कानून सबसे उपर है। तमाम चुनौतियों के बीच, कई  बार देश के लिए संविधान...

नेशनल डेस्क:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि 1.3 अरब भारतीयों ने तमाम आशंकाओं को दरकिनार कर अदालतों के हालिया मुश्किल फैसलों का खुले दिल से स्वागत किया है, जिसकी दुनियाभर में चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री ने उच्चतम न्यायालय में 'न्यायपालिका और बदलती दुनिया' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायपालिका सम्मेलन 2020 के उद्घाटन समारोह में अदालतों के हालिया मुश्किल फैसलों का जिक्र किया। उनका इशारा राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या मामले पर आए ऐतिहासिक फैसले की ओर था। प्रधानमंत्री ने लैंगिग न्याय के संदर्भ में ट्रांसजेंडरों को लेकर कानून, ‘तीन तलाक' और दिव्यांगों के अधिकारों का जिक्र करते हुए कहा कि दुनिया का कोई भी देश या समाज इसके बिना समग्र विकास को प्राप्त करने का दावा नहीं कर सकता। 

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प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने सैन्य सेवाओं में महिलाओं को अधिकार देने और महिलाओं को 26 सप्ताह तक मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए भी कदम उठाए हैं। उन्होंने विकास और पारिस्थितिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने के लिए पर्यावरण न्यायशास्त्र को पुनर्परिभाषित करने में भारतीय न्यायपालिका की प्रशंसा की। मोदी ने प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के उपयोग पर जोर देते हुए कहा कि यह अदालतों के प्रक्रियात्मक प्रबंधन में मदद करेगा और न्याय प्रणाली को काफी हद तक लाभान्वित करेगा। उन्होंने मानव बुद्धि के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता के मेल का भी उल्लेख किया और कहा कि यह "न्याय दिलाने की प्रक्रिया में तेजी लाएगा। इसके अलावा, बदलते समय के साथ डेटा संरक्षण, साइबर-अपराध न्यायपालिका के सामने नयी चुनौतियां पेश कर रहे हैं।''

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मोदी ने कहा कि हाल ही में दिये गए कुछ महत्वपूर्ण अदालती फैसले वैश्विक चर्चा का विषय रहे हैं। यह फैसले आने से पहले इनके परिणामों को लेकर चिताएं व्यक्त की जा रही थीं। लेकिन देखिये क्या हुआ! 1.3 अरब भारतीयों ने उन अदालती फैसलों का खुले दिन से स्वागत किया। उन्होंने महात्मा गांधी के योगदान पर बात करते हुए कहा कि गांधीजी का जीवन सत्य और सेवा के लिए समर्पित था, जो कि न्याय की किसी भी व्यवस्था के लिए मूलभूत सिद्धांत हैं और जैसा कि आप सभी जानते हैं, वह स्वयं एक बैरिस्टर थे और वकीलों की बिरादरी के थे। उन्होंने जीवंत न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को सलाम करते हुए कहा कि संविधान के इन तीन स्तंभों ने एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र और गरिमा का सम्मान करते हुए, कई मौकों पर देश के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें भारत में ऐसी समृद्ध परंपरा के विकसित होने पर गर्व है। पिछले पांच वर्षों में, भारत के विभिन्न संस्थानों ने इस परंपरा को और मजबूत किया है। उन्होंने 1,500 पुरातन कानूनों को निरस्त करने के केंद्र के प्रयास का जिक्र करते हुए कहा कि न सिर्फ अप्रासंगिक कानूनों को खत्म करने, बल्कि सामाजिक तानेबाने को मजबूत करने के उद्देश्य से नए विधानों को लागू करने की गति भी बढ़ गई है। भारतीय संविधान समानता के अधिकार के प्रावधानों के तहत लैंगिक न्याय की गारंटी देता है। 

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मोदी ने कहा कि भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने स्वतंत्रता के बाद से महिलाओं का मताधिकार सुनिश्चित किया है। उन्होंने अपनी सरकार के महत्वाकांक्षी 'बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ' कार्यक्रम का भी जिक्र किया। इसी तरह, सरकार ने कई बदलाव किए हैं, चाहे वह सैन्य सेवा में महिलाओं की नियुक्ति हो या लड़ाकू पायलटों की चयन प्रक्रिया या रात में खदानों में काम करने की उनकी स्वतंत्रता के बारे में हो।" इस मौके पर भारत के प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि भारत विभिन्न संस्कृतियों का समागम है, जिसमें मुगलों, डच, पुर्तगालियों और अंग्रेजों की संस्कृतियां समाहित हैं। बोबडे ने कहा कि संविधान ने एक मजबूत तथा स्वतंत्र न्यायपालिका का सृजन किया है और हमने इस मूलभूत विशेषता को अक्षुण्ण रखने का प्रयास किया है।  इससे पहले केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उच्चतम न्यायालय के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि आतंकवादियों और भ्रष्ट लोगों के लिये ''निजता का कोई अधिकार नहीं है और ऐसे लोगों को व्यवस्था का दुरुपयोग नहीं करने देना चाहिये। प्रसाद ने कहा कि शासन की जिम्मेदारी निर्वाचित प्रतिनिधियों और निर्णय सुनाने का काम न्यायाधीशों पर पर छोड़ देना चाहिये। कानून मंत्री ने कहा कि लोकलुभावनवाद को कानून के तय सिद्धांतों से ऊपर नहीं होना चाहिये। 

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