मैग्नाकार्टा से भी पुराना है भारतीय लोकतंत्र, पीएम बोले- दुनिया भी कहेगी 'India's Mother of Democracy'

Edited By Yaspal,Updated: 10 Dec, 2020 08:53 PM

pm said the world will also say  india is mother of democracy

प्रधानमंत्री ने नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर कहा कि भारतीय लोकतांत्रिक परम्पराएं 13वीं शताब्दी में रचित मैग्ना कार्टा, जिसे विद्वान लोकतंत्र की बुनियाद बताते हैं, से भी पहले की हैं और कहा कि जब देशवासी अपने लोकतांत्रिक इतिहास का गौरवगान...

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री ने नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर कहा कि भारतीय लोकतांत्रिक परम्पराएं 13वीं शताब्दी में रचित मैग्ना कार्टा, जिसे विद्वान लोकतंत्र की बुनियाद बताते हैं, से भी पहले की हैं और कहा कि जब देशवासी अपने लोकतांत्रिक इतिहास का गौरवगान करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब दुनिया भी भारत को लोकतंत्र की जननी कहेगी। मोदी ने यह भी कहा कि भारतीय लोकतंत्र का इतिहास देश के हर कोने में नजर आता है और इसके पक्ष में उन्होंने शाक्‍या, मल्‍लम और वेज्‍जी जैसे गणतंत्र तथा लिच्‍छवी, मल्‍लक मरक और कम्‍बोज जैसे गणराज्‍य का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ‘‘सभी ने लोकतंत्र को ही शासन का आधार बनाया था। हजारों साल पहले रचित हमारे वेदों में से ऋग्वेद में लोकतंत्र के विचार को समज्ञान यानि समूह चेतना के रूप में देखा गया है।''

मोदी ने कहा कि आमतौर पर अन्य जगहों पर जब लोकतंत्र की चर्चा होती है तो चुनाव प्रक्रियाओं और शासन-प्रशासन की बात होती है तथा इस प्रकार की व्यवस्था पर अधिक बल देने को ही कुछ स्थानों पर लोकतंत्र कहा जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन भारत में लोकतंत्र एक संस्कार है। भारत के लिए लोकतंत्र जीवन मूल्य है, जीवन पद्धति है, राष्ट्र जीवन की आत्मा है। भारत का लोकतंत्र, सदियों के अनुभव से विकसित हुई व्यवस्था है। भारत के लिए लोकतंत्र में, जीवन मंत्र भी है, जीवन तत्व भी है और साथ ही व्यवस्था का तंत्र भी है।''

भारत में लोकतंत्र को हमेशा से शासन के साथ ही मतभेदों को सुलझाने का माध्यम बताते हुए उन्होंने कहा कि अलग-अलग विचार और अलग-अलग दृष्टिकोण ही एक जीवंत लोकतंत्र को सशक्त करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मतभेदों के लिए हमेशा जगह हो लेकिन डिसकनेक्ट कभी ना हो, इसी लक्ष्य को लेकर हमारा लोकतंत्र आगे बढ़ा है।'' उन्होंने कहा, ‘‘नीतियों में अंतर हो सकता है, राजनीति में भिन्नता हो सकती है, लेकिन हम जनता की सेवा के लिए हैं। इस अंतिम लक्ष्य में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। वाद-संवाद संसद के भीतर हों या संसद के बाहर, राष्ट्रसेवा का संकल्प, राष्ट्रहित के प्रति समर्पण लगातार झलकना चाहिए।''

इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने देशवासियों से भारत सर्वोपरि का प्रण लेने का आह्वान किया और कहा कि देश के संविधान की मान-मर्यादा और उसकी अपेक्षाओं की पूर्ति जीवन का सबसे बड़ा ध्येय है। उन्होंने कहा, ‘‘हम प्रण लें कि देशहित से बड़ा और कोई हित कभी नहीं होगा। हम भारत के लोग, ये प्रण करें कि हमारे लिए देश की चिंता, अपनी खुद की चिंता से बढ़कर होगी। हमारे लिए देश की एकता, अखंडता से बढ़कर कुछ नहीं होगा।'' उन्होंने कहा, ‘‘हमें संकल्प लेना है भारत सर्वोपरि का। हम सिर्फ और सिर्फ भारत की उन्नति, भारत के विकास को ही अपनी आराधना बना लें। हमारा हर फैसला देश की ताकत बढ़ाए। हमारा हर निर्णय, हर फैसला, एक ही तराजू में तौला जाए। और वो है- देश का हित सर्वोपरि।''

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की एकता-अखंडता को लेकर किए गए उनके प्रयास, इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की ऊर्जा बनेंगे। जब एक एक जनप्रतिनिधि, अपना ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, अपना अनुभव पूर्ण रूप से यहां निचोड़ देगा, उसका अभिषेक करेगा, तब इस नए संसद भवन की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। मोदी ने कहा कि लोकतंत्र के इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा इसमें चुनकर आने वाले जन-प्रतिनिधि, उनका समर्पण, उनका सेवा भाव, और उनका आचार-विचार-व्यवहार, करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें याद रखना है कि वो लोकतंत्र जो संसद भवन के अस्तित्व का आधार है, उसके प्रति आशावाद को जगाए रखना हम सभी का दायित्व है। हमें ये हमेशा याद रखना है कि संसद पहुंचा हर प्रतिनिधि जवाबदेह है। ये जवाबदेही जनता के प्रति भी है और संविधान के प्रति भी है।''
 

 

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