विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद भाजपा को हुआ सियासी नुकसान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Dec, 2017 02:02 PM

political loss to bjp after disputed structure

अयोध्या के विवादित ढांचे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल द्वारा सुनवाई को जुलाई, 2019 तक टालने की मांग के पीछे जो तर्क दिया जा रहा है आंकड़ों के हिसाब से यह कुछ हद तक ठीक लग रहा है

जालंधर (नरेश): अयोध्या के विवादित ढांचे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल द्वारा सुनवाई को जुलाई, 2019 तक टालने की मांग के पीछे जो तर्क दिया जा रहा है आंकड़ों के हिसाब से यह कुछ हद तक ठीक लग रहा है, लेकिन यदि हम चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो पता लगता है कि विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद भाजपा को इसके सियासी फायदे के साथ-साथ नुक्सान भी हुआ था।

1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा लोकसभा की 120 सीटों पर चुनाव जीती थी। भाजपा के लिए सबसे अहम राजनीतिक सफलता गुजरात में रही थी क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवानी ने राम मंदिर को लेकर सोमनाथ से ही यात्रा की शुरूआत की थी। 6 दिसम्बर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के 3 साल बाद गुजरात में हुए विधानसभा के चुनाव के दौरान पार्टी को 121 सीटें हासिल हुईं जबकि इससे पहले 1990 में वह सिर्फ 67 सीटों वाली पार्टी थी।  

भाजपा को महाराष्ट्र और राजस्थान में भी इसका सियासी फायदा हुआ। महाराष्ट्र में 1990 में हुए चुनाव में भाजपा को 42 सीटें मिली थीं जबकि उसकी सहयोगी और समान विचारधारा वाली शिवसेना को 52 सीटें हासिल हुई थीं। 

कांग्रेस को इस दौरान 141 सीटें मिलीं जबकि 1995 के चुनाव में भाजपा की सीटें बढ़ कर 65 और शिवसेना की सीटें बढ़ कर 73 हो गईं जबकि कांग्रेस को 61 सीटों का नुक्सान हुआ और वह 80 सीटों पर सिमट गई। राजस्थान में भी भाजपा को 1990 में 85 सीटें मिली थीं जो कि 1993 में बढ़ कर 95 हो गईं। हालांकि इन चुनावों में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा फायदा हुआ और कांग्रेस की सीटें 1990 के 50 के आंकड़े के मुकाबले बढ़ कर 76 हो गईं। इस दौरान जनता दल को सबसे ज्यादा नुक्सान हुआ और उसकी सीटें 55 से कम होकर 6 रह गईं। 

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