मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी भी समझ नहीं पाते भाजपा के चाणक्य अमित शाह की रणनीतियां

Edited By shukdev,Updated: 30 May, 2019 09:56 PM

political players can not understand amit shah s strategies

शतरंज खेलने, क्रिकेट देखने एवं संगीत में गहरी रुचि रखने वाले भाजपा के ‘चाणक्य'' अमित शाह ने राज्य दर राज्य भाजपा की सफलता की गाथा लिखते हुए इस बार लोकसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या 303 करने में महती भूमिका निभाई है। अमित शाह ने गुरुवार...

नई दिल्ली: शतरंज खेलने, क्रिकेट देखने एवं संगीत में गहरी रुचि रखने वाले भाजपा के ‘चाणक्य' अमित शाह ने राज्य दर राज्य भाजपा की सफलता की गाथा लिखते हुए इस बार लोकसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या 303 करने में महती भूमिका निभाई है। अमित शाह ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल सदस्य के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। 

वर्तमान लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल, ओडिशा और दक्षिण भारत में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए भाजपा अध्यक्ष शाह की सफल रणनीति को श्रेय दे रहे राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विचारधारा की दृढ़ता, असीमित कल्पनाशीलता और वास्तविक राजनीतिक लचीलेपन का शानदार समन्वय कर शाह ने चुनावी समर में भाजपा की शानदार जीत का मार्ग प्रशस्त किया। शाह ने बिहार और महाराष्ट्र में न केवल राजग के घटक दलों के साथ गठबंधन को लेकर लचीला रुख अपनाया बल्कि स्थानीय स्तर पर प्रतिद्वन्द्वी दलों के वोट बैंक को अपनी पार्टी के पाले में लाने की सफल रणनीति बनाई। 

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उन्होंने तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में भी गठबंधन किया। पूर्वोत्तर में गठबंधन के परिणाम स्पष्ट रूप से सामने आए हैं। भाजपा की जीत के साथ ही किसी गैर कांग्रेसी सरकार को लगातार दूसरी बार केन्द्र की सत्ता में लाने के प्रमुख सूत्रधार शाह ने बूथ से लेकर चुनाव मैदान तक प्रबंधन और प्रचार की ऐसी सधी हुई बिसात बिछाई कि मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी भी मात खा गए। राजनीति के इस माहिर रणनीतिकार ने ‘पंचायत से लेकर संसद' तक भाजपा को सत्ता में लाने के सपने को साकार करने की दिशा में प्रतिबद्ध पहल की । 

जुलाई 2014 में भाजपा अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद भाजपा के विस्तार के लिये उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और पार्टी कार्यकर्ताओं को जी-जान से जुट जाने का संदेश दिया। शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में गांधीनगर में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था। लेकिन, उनके बूथ प्रबंधन का करिश्मा 1995 के उपचुनाव में नजर आया, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अधिवक्ता यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया। 

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खुद यतिन कहते हैं कि शाह को राजनीति के सिवा और कुछ नहीं दिखता। शतरंज खेलने से लेकर क्रिकेट देखने एवं संगीत में भी गहरी रुचि रखने वाले 54 वर्षीय शाह पारिवारिक और सामाजिक मेल-मिलाप में बहुत कम वक्त जाया करते हैं। संगठन और प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी शाह ने पहली बार सरखेज से 1997 के विधानसभा उपचुनाव में किस्मत आजमायी और 2012 तक लगातार पांच बार वहां से विधायक चुने गये। सरखेज की जीत ने उन्हें गुजरात में युवा और तेजतर्रार नेता के रूप में स्थापित किया और वह आगे बढ़ते गए। नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद शाह और अधिक मजबूती से उभरे। 

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2003 से 2010 तक गुजरात सरकार की कैबिनेट में उन्होंने गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाला। जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर आए तो उनके सबसे करीबी माने जाने वाले अमित शाह भी देश में भाजपा के प्रचार प्रसार में जुट गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने देश में करीब 500 चुनाव समितियों का गठन किया और करीब 7000 नेताओं को तैनात किया । उन्होंने पार्टी के चुनाव अभियान में ऐसी 120 सीटों पर खास ध्यान दिया जहां भाजपा पहले चुनाव नहीं जीत पायी थी । उन्होंने पार्टी का अभियान चलाने के लिये 3000 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को तैनात किया । और नतीजा, भाजपा के खाते में 303 सीटों के रूप में सामने आया। 

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