हाफिज सईद का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया !

Edited By ,Updated: 03 May, 2016 11:56 PM

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पाकिस्तान के प्रतिबंधित जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद का यह बयान पढ़कर या सुनकर भारत के हिंदू समुदाय के लोगों को

पाकिस्तान के प्रतिबंधित जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद का यह बयान पढ़कर या सुनकर भारत के हिंदू समुदाय के लोगों को अच्छा लगा होगा कि उसका संगठन देश में मंदिरों एवं गैर-मुस्लिमों के अन्य पवित्र स्थानों का विध्वंस नहीं होने देगा। सईद ने  मुसलमानों को उनकी जिम्मेदारी याद दिला दी है कि वे अपने हिंदू भाइयों के पवित्र स्थलों की रक्षा करें। यह उनकी सराहनीय अपील कही जा सकती है। सवाल है ​कि पाकिस्तान में हिंदुओं के कितने मंदिर सुरक्षित बचे हैं। लंबे समय से वहां सरकारों ने कभी इन मंदिरों की सुध नहीं ली है।

भारत के उप प्रधानमंत्री रह चुके लालकृष्ण आडवाणी अपनी एक निजी यात्रा पर पाकिस्तान गए थे। उस समय जून 2005 में वे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित कटासराज मंदिर में भी गए। तब पहली बार आजाद भारत में राष्ट्रीय स्तर पर कटासराज मंदिर का नाम सामने आया था। अपनी उस यात्रा में आडवाणी ने इस मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार के लिए वहां शिलान्यास भी किया था और पाकिस्तान सरकार ने करीब 10 करोड़ रुपया खर्च करके मंदिर का जीर्णोद्धार करने का दावा किया। जीर्णोद्धार पूरा हुआ या नहीं,इसकी कोई जानकारी नहीं। वर्ष 2010 में अहमद बशीर ताहिर द्वारा बनाई गई डाक्यूमेन्ट्री में दिखाया गया था कि 2011 तक कटासराज मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार हो जाएगा। तब से लेकर अब तक सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं कि यह काम कहां तक पहुंचा होगा। पाकिस्तान में मंदिरों के समृद्ध और गौरवशाली अतीत के अवशेष आज भी बिखरे पड़े हैं। 

भारतीयों में यह एक आम जिज्ञासा है कि वहां कितने मंदिर बचे हैं, वहां पूजा-अर्चना संभव भी है या नहीं। पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के प्रति बहुत सहिष्णु नहीं है। बाबरी विध्वंस के बाद वहां मंदिर लगातार निशाना बने हैं। विभाजन के समय पाकिस्तान में मंदिरों की संख्या करीब तीन सौ थी। अब यह काफी सिमट चुकी है। मार्च 2014 में पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत में पवित्र पुस्तक के कथित अपमान के मुद्दे को लेकर क्रुद्ध भीड़ ने एक हिन्दू मंदिर और धर्मशाला को आग लगा दी थी। भुट्टो परिवार के गृहनगर लरकाना शहर में रात को भीड़ ने मंदिर पर हमला किया था। पुलिस ने कोशिश की स्थिति नियंत्रित हो जाए,लेकिन भीड़ कहां मानने वाली थी।

दिसंबर 2012 में कराची की एक अदालत में मामला लंबित होने के बावजूद एक बिल्डर द्वारा आनन-फानन में सौ साल पुराने मंदिर को ढहा दिया गया। इससे अल्पसंख्यक हिन्दुओं में रोष फैल गया। कराची के सोल्जियर बाजार में विभाजन से पहले के श्रीराम पीर मंदिर को ढहाने के अलावा कई मकान तोड़ दिए। बिल्डर के विरुद्ध प्रशासन द्वारा कार्रवाई न करने का विरोध किया गया। नवंबर 2012 में कराची के बाहरी इलाके में स्थित श्री कृष्ण राम मंदिर पर दूसरी बार हमला ​किया गया। हमलावरों ने हवा में पिस्तौल लहराई। हिन्दुओं के खिलाफ नारे लगाए और प्रतिमाओं से छेड़छाड़ की। ण्क पीडित ने बताया कि हमें समान नागरिक नहीं समझा जाता। लोग जब चाहते हैं, हमें मारते हैं। हमारे लिए यहां कोई पूजा स्थल नहीं बचा।

पाकिस्तान में अनादिकाल से जो धार्मिक स्थल सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है, वह है हिंगलाज माता का मंदिर। भारतीय उपमहाद्वीप में क्षत्रियों की कुलदेवी के रूप में विख्यात हिंगलाज भवानी माता का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि आदि शक्ति का सिर जहां गिरा, वहीं पर हिंगलाज माता का मंदिर स्थापित हो गया। इस मंदिर के सालाना जलसे या मेले में केवल हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुसलमान भी आते हैं। श्रद्धा से हिंगलाज माता मंदिर को 'नानी का मंदर' या फिर 'नानी का हज' कहते हैं। सिन्ध प्रांत में थारपारकर जिले में स्थित गोरी मंदिर वहां स्थित हिन्दुओं का एक और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। देश के सबसे अधिक हिन्दू इसी थारपारकर जिले में ही रहते हैं। इन्हें पाकिस्तान में थारी हिन्दू कहा जाता है। यहां गोरी मंदिर मुख्य रूप से जैन मंदिर है, लेकिन अब इसमें अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की मुख्य मूर्ति वहां से हटाकर मुंबई में स्थापित की जा चुकी हैं, जिन्हें गोदीजी पार्श्वनाथ कहते हैं। 

हिन्दू सभ्यता की मौत का एकमात्र गवाह भग्नावशेष के रूप में पाकिस्तान में मौजूद है। मरी इंडस के नाम से मशहूर यह मंदिर परिसर पहली से पांचवीं शताब्दी के बीच बनाया गया। मरी उस वक्त गांधार प्रदेश का हिस्सा था और चीनी यात्री ह्वेनासांग ने इसका जिक्र किया है कि पूरे इलाके में हिन्दू और बौद्ध मंदिर खत्म हो रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान और दुनिया के आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि मरी के मंदिर सातवीं शताब्दी के बाद के हो सकते हैं। ये मंदिर लगभग खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।    

बिना महादेवी शारदा के कश्मीर का कोई अस्तित्व नहीं था, लेकिन ऐसा भी नहीं है। सनातन धर्मशास्त्र के अनुसार भगवान शंकर ने सती के शव के साथ जब तांडव किया था उसमें सती का दाहिना हाथ इसी पर्वतराज हिमालय की तराई कश्मीर में गिरा था। शारदा गांव में। यहां मंदिर कब अस्तित्व में आया इसका कोई इतिहास नहीं, लेकिन अब भारतीय नियंत्रण रेखा से महज 17 मील दूर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के इस मंदिर के नाम पर सिर्फ यही भग्नावशेष बचा है। एक पहाड़ी में गुफा बनाकर निर्मित रत्नेश्वर महादेव का मंदिर 300 साल पुराना है। यह मंदिर तब सुर्खियों में आया जब इसके पास से एक पुल बनाने का काम शुरू हुआ। अप्रैल 2014 में मंदिर के पास पुल निर्माण को लेकर पाकिस्तानियों ने मंदिर बचाने की मुहिम छेड़ी। 

पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के रिकार्ड के मुताबिक कराची के मनोरा केंट स्थित वरुणदेव मंदिर 160 साल पुराना है। वरुणदेव के मंदिर के अलावा यहां शिव शंकर और हनुमान जी के भी छोटे मंदिर हैंं। जून 2007 के बाद से इसकी देखरेख इसी काउंसिल के पास है। स्वामीनारायण मंदिर को पाकिस्तान में अकेला मंदिर माना जाता है जो स्वामीनारायण सम्प्रदाय का है। अप्रेल 2004 में इस मंदिर की 150वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। आजादी के समय इस मंदिर को शरणार्थी शिविर में तब्दील कर दिया गया। यहां मौजूद भगवान स्वामीनारायण की मूर्तियों को भारत लाया गया। पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने भी इस मंदिर के दर्शन किए थे। आजादी के बाद 1989 में अहमदाबाद के स्वामीनारायण मंदिर के साधुओं का एक दल यहां दर्शनों के लिए आया। इसी मंदिर परिसर में बना है एक छोटा सा गुरुद्वारा, जहां हर साल वैशाखी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

कराची के क्वींस रोड़ पर लक्ष्मी नारायण मंदिर 200 साल पहले बनाया गया था। यहां पर हर वर्ष गणेश चतुर्थी, रक्षा बंधन, नवरात्रि आदि पर्व मनाए जाते हैं। 2012 में सिंध हाई कोर्ट ने इस 200 साल पुराने मंदिर को गिराए जाने पर पाबंदी लगा दी थी। पाकिस्तान के ये मंदिर सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के स्थान हैं। न सिर्फ पाकिस्तान के लिए बल्कि हिन्दुओं के लिए और इतिहास के दृष्टिकोण से भी। आज भी पाकिस्तान में सैकड़ों मंदिर ऐसे हैं जिनके रखरखाव पर ध्यान नहीं देने से वे खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। पाकिस्तान के जैसे हालात हैं अब इन मंदिरों के बचने की कोई खास उम्मीद भी नहीं है। जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद ने जो कहा है वह उम्मीद की एकमात्र किरण साबित हो सकती है। आतंकी हमलों के दौरान इन मंदिरों को क्षतिग्रस्त होने से कितना बचाया जाता है यह जिम्मेवारी खासतौर पर मुस्लिम समुदाय की है।

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