मीडिया में महिला फोटोग्राफर जिन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में बनाई जगह

Edited By Anil dev,Updated: 02 May, 2018 05:07 PM

press photography sarvesh krishna roy  wanwalla

प्रेस फोटोग्राफी को पुरूषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र समझा जाता है। इस पेशे में अपनी अलहदा पहचान बनाने वाली अधिकतर महिलाओं को काफी संघर्ष करना पड़ा है, प्रचलित सोच को तोडऩा पड़ा है। वरिष्ठ छायाकार सर्वेश ने अपनी किताब ‘परफेक्ट फ्रेम’ में कैमरे के हर...

नई दिल्ली: प्रेस फोटोग्राफी को पुरूषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र समझा जाता है। इस पेशे में अपनी अलहदा पहचान बनाने वाली अधिकतर महिलाओं को काफी संघर्ष करना पड़ा है, प्रचलित सोच को तोडऩा पड़ा है। वरिष्ठ छायाकार सर्वेश ने अपनी किताब ‘परफेक्ट फ्रेम’ में कैमरे के हर क्लिक के साथ प्रचलित वर्जनाओं को तोडऩे वाली इसी तरह की कई महिला छायाकारों के अनुभव एवं किस्से बयां किए हैं। किताब में महिला फोटोग्राफरों के उन अनुभवों को भी शामिल किया गया है किस तरह उन्हें पुरूष प्रधान कार्यस्थलों पर असमानता का सामन करना पड़ा और पुरूष सहर्किमयों की रूढि़वादी एवं पक्षपातपूर्ण सोच से दो चार होना पड़ा। सर्वेश ने देश में फोटोग्राफी के बदलते स्वरूप को देखा हैं। महिला छायाकारों को तस्वीरों के लिए दिन-रात भागदौड़ करने और तमाम पारिवारिेक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में संघर्ष करते देखा है।     

उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, ‘‘फोटोग्राफी में हमेशा से पुरूषों का वर्चस्व रहा है। प्रेस फोटोग्राफी का करियर ऊपर से जितना आकर्षक लगता है, वह वास्तव में उतना है नहीं। अपने और दूसरी तमाम महिला फोटोग्राफरों के बारे में यह सवाल बार बार मेरे दिमाग में उठता रहा है और इसका जवाब ढूंढऩे की कोशिश मुझे देश की तमाम महिला प्रेस फोटोग्राफरों तक ले गई। फिर उनकी कहानी मेरी ही कहानी बन गयी और यह किताब सामने आयी।’’ किताब में देश की पहली महिला छायाकर होमई वयारवाला से लेकर ‘रूप कुंवर सती कांड’ की तस्वीरों से चर्चा में आयीं सरस्वती चक्रवर्ती, कई आईपीएल एवं राष्ट्रमंडल खेल कवर करने वालीं कृष्णा रॉय, 2008 के मुंबई आतंकी हमले की तस्वीरें कैद करने वालीं उमा कदम और तिहाड़ के कैदियों के जीवन को कैमरे में उतारने वालीं रेणुका पुरी जैसी तमाम महिला छायाकारों के संस्मरण दर्ज हैं। 

किताब में कई रोचक तथ्य दिए गए हैं। मसलन वयारवाला हमेशा साड़ी पहनती थीं और उनके साथ के लोग उन्हें प्यार से ‘मम्मी’ कहकर बुलाते थे। इसी तरह मुंबई हमले की तस्वीरें उतार रहीं उमा के घरवालों ने टीवी पर उन्हें हमले के बीच तस्वीरें उतारते देखकर वहां से लौट आने को कहा था, लेकिन वह अपना फोन बंद कर लगातार वहां जमीं रहीं और किस तरह से सती कांड के दौरान एक तस्वीर लेने के लिए सरस्वती ने एक छत से छलांग दी थी। किताब में महिला फोटोग्राफरों ने अपने सामने आयी दिक्कतों का भी जिक्र किया। 

उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें पुरूष प्रधान कार्यस्थलों पर असमानता, पुरूष सहर्किमयों की रूढि़वादी एवं पक्षपातपूर्ण सोच से दो चार होना पड़ा लेकिन वे उनसे घबरायी नहीं और डटी रहीं। वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने किताब की प्रशंसा करते हुए लिखा है, ‘‘मेरा मानना है कि समाज के सारे तंत्र की बाबत हमारी समझ एवं संवेदना का दायरा कुछ और बढ़ाने में यह किताब समाज शास्त्रियों, पत्रकारों और पेशेवर कामकाजी महिलाओं के अलावा सभी संवेदनशील न्यायप्रिय पाठकों के लिए भी निश्चित तौर पर बहुत प्रभाव छोड़ेगी।’’      

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