पूर्वी UP में मोदी-योगी के सामने प्रियंका

Edited By Anil dev,Updated: 24 Jan, 2019 11:09 AM

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प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में पदार्पण को लेकर लंबे अर्से से चल रहे सस्पैंस का पटाक्षेप हो गया। बहन-बबुआ के गठबंधन से दरकिनार होने के बाद बैकफुट पर आई कांग्रेस को अपने तरकश में मौजूद ब्रह्मास्त्र को चलाना ही पड़ा।

नई दिल्ली(महिन्द्र ठाकुर): प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में पदार्पण को लेकर लंबे अर्से से चल रहे सस्पैंस का पटाक्षेप हो गया। बहन-बबुआ के गठबंधन से दरकिनार होने के बाद बैकफुट पर आई कांग्रेस को अपने तरकश में मौजूद ब्रह्मास्त्र को चलाना ही पड़ा। राहुल समेत कांग्रेस के तमाम झंडाबरदारों को इस बात का इल्म बखूबी है कि 2019 का चुनावी समर उनके लिए करो या मरो वाला है। लिहाजा कांग्रेस इस बहुकोणीय समर में अपनी पूरी ताकत झोंक देने को आतुर है। कांग्रेस के सिपहसालार यह भी भली-भांति जानते हैं कि राहुल में मोदी जैसे कद्दावर और व्यापक जनाधार वाले नेता की चमक को फीका करने का माद्दा अभी नहीं है इसलिए प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारने के पीछे कहीं न कहीं उन्होंने मोदी फैक्टर को मद्देनजर रखा होगा। जिस तरह से प्रियंका को पूर्वी यू.पी. की कमान सौंपी है उससे भी इस बात को बल मिलता है कि कांग्रेसी उन्हें मोदी की काट के रूप में ही देख रहे हैं। इसी प्वाइंट पर सवाल पैदा होता है कि क्या प्रियंका मोदी की काट बन पाएंगी? 

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क्या वह मोदी जैसे कुशल वक्ता व विराट व्यक्तित्व वाले करिश्माई नेता को झेल पाएंगी? क्या वह पूर्वी यू.पी. में मृतप्राय: कांग्रेसी संगठन में जान फूंकने का काम कर पाएंगी। फिलवक्त इन तमाम सवालों के जवाब तो भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन यह तय है कि प्रियंका का सक्रिय राजनीति में पदार्पण यू.पी. में दरकिनार हो चुकी कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगा। प्रियंका भले ही कभी सक्रिय राजनीति में नहीं आईं, पर कांग्रेस के हर अच्छे-बुरे निर्णय में पर्दे के पीछे उनकी भूमिका भी उतनी ही अहम रही जितनी कि सोनिया-राहुल की रही।

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प्रियंका ने अपनी मां सोनिया की रायबरेली व भाई राहुल की संसदीय सीट अमेठी की कमान न केवल संभाली बल्कि इन दोनों सीटों को भारी-भरकम अंतर से जिता कर अपने रणनीतिक कौशल का सबूत कई दफा दिया। चूंकि पी.एम. मोदी पूर्वांचल की वाराणसी से सांसद हैं वहीं यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूर्वांचल से आते हैं। इसलिए यह बात दीगर है कि करियर की पहली पारी में ही प्रियंका का सामना भाजपा के सबसे बड़े व कद्दावर नेताओं से होगा। प्रियंका इस चुनौती से पार पाएंगी या नहीं, पर यह तय है कि उनके पदार्पण से सपा-बसपा की सियासी राह मुश्किल होगी क्योंकि जैसे-जैसे यू.पी. में कांग्रेस उभरेगी वैसे-वैसे इन दोनों दलों की सियासी जमीन खिसकेगी।

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यू.पी. के ब्राह्मण वोटर पर नजर 
हालांकि पूर्वांचल ब्राह्मणों का मजबूत गढ़ माना जाता है। पूर्वांचल की अधिकतर सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं की खासी भूमिका रहती है। एक दौर में ब्राह्मण पारम्परिक तौर पर कांग्रेस के समर्थक थे लेकिन मंडल आंदोलन के बाद उनका झुकाव भाजपा की ओर हो गया। बाद में ब्राह्मण मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का झुकाव मायावती की बसपा की तरफ  भी हुआ और 2014 के लोकसभा चुनाव में इस तबके का झुकाव फिर भाजपा की ओर हो गया। ऐसे में कांग्रेस प्रियंका से यह उम्मीद कर रही है कि वह अपने खोए वोट बैंक को वापस लाएंगी।   

मोदी-योगी की काट
कांग्रेस प्रियंका को बतौर मोदी-योगी की काट के रूप में देख रही है। अपनी इसी रणनीति के चलते उन्हें पूर्वोत्तर का प्रभार सौंपा है। प्रियंका को इस क्षेत्र की कमान सौंपने से कहीं न कहीं मोदी-योगी का प्रभाव कम होगा और कांग्रेस मजबूत होगी। 

कार्यकत्र्ताओं में जोश
प्रियंका भले ही सक्रिय राजनीति में नहीं थीं इसके बावजूद कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं में वह खासी लोकप्रिय रही हैं इसलिए उनके राजनीति में आने से कार्यकत्र्ताओं में नए उत्साह का संचार होगा।

सुषमा के पक्ष में बने माहौल की निकाल दी थी हवा
1999 के आम चुनाव में सोनिया यू.पी. की अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव मैदान में थीं। भाजपा ने उनकी घेराबंदी के लिए सुषमा को उतारा था। वहां सुषमा ने कन्नड़ में भाषण दे सारी महफिलें लूट ली थीं। एक बारगी तो ऐसा लगा कि कहीं सोनिया हार न जाए। ऐसे नाजुक समय में कांग्रेस ने प्रचार की कमान  प्रियंका को सौंपी। इसके बाद प्रियंका ने एक ही रोड शो के जरिए सुषमा के पक्ष में बने माहौल की हवा निकाल दी थी। 

चुनावी प्रबंधन में माहिर
प्रियंका बहुत ही माहिर चुनावी प्रबंधक हैं। मां और भाई के चुनावी क्षेत्रों में वह स्वयं मोर्चा संभालती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में  जब भाजपा ने स्मृति ईरानी को अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ उतारा था तब विरोधी महिला उम्मीदवार की काट के लिए प्रियंका ने अमेठी में जमकर चुनाव प्रचार किया और अपने भाई की जीत सुनिश्चित की।

दादी की तरह है कुशल वक्ता
प्रियंका गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अक्स के तौर पर देखा जाता है। सख्त छवि और कड़े फैसले लेने की क्षमता के साथ प्रभावशाली भाषण देने वाली इंदिरा गांधी की तरह प्रियंका गांधी को भी बेहतर वक्ता के तौर पर ख्याति प्राप्त है। इसके अलावा उनका स्टाइल भी अपनी दादी और पूर्व पी.एम. इंदिरा की तरह नजर आता है। 

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