लुप्त होता आस्था का केन्द्र:पुरमंडल का प्रसिद्ध खड्गेश्वर धाम

Edited By Monika Jamwal,Updated: 21 Aug, 2020 07:19 PM

purmandal temples are in edge of destroy

देवस्थान पुरमण्डल से लेकर उत्तरवाहिनी तक आठ श्वेत लिंगों में चौथा लिंग भगवान खड्गेश्वर का है। पदम पुराण के अनुसार: खडग़ेश्वरं चतुर्थ च ङ्क्षलग त्रैलोक्य विश्वुतम्, पूजयेद्विधिना चैनं यमलोक न पश्यति।।

साम्बा (संजीव): देवस्थान पुरमण्डल से लेकर उत्तरवाहिनी तक आठ श्वेत लिंगों में चौथा लिंग भगवान खड्गेश्वर का है। पदम पुराण के अनुसार: खडग़ेश्वरं चतुर्थ च ङ्क्षलग त्रैलोक्य विश्वुतम्, पूजयेद्विधिना चैनं यमलोक न पश्यति।। अर्थात: चतुर्थ त्रिलोक में प्रसिद्ध खड्गेश्वर लिंग है, जिसने इसका विधि संयुक्त पूजन किया है, वह यमलोक को कभी नहीं देखता है। स्थानीय निवासी (सेवानिवृत फाईनांशियल एडवाईज़र एंड चीफ एकाऊंट्स आफिसर) जवाहर लाल बडू बताते हैं कि यह लिंग पुरमंडल बसस्टेंड पर एक 4फ ीट ऊंचे चबूतरे पर बने भव्य मन्दिर में  विराजमान है। मन्दिर का प्रवेश द्वार देविका नदी की ओर खुलता है अपितु लिंग का मुख उत्तर दिशा की ओर है। यह स्थान प्राचीनकाल से ही यात्रियों के लिये आस्था तथा आकर्षण का केन्द्र रहा है। अक्सर लोग यहां पुत्र प्रािप्त के लिए मन्नतें माँगते हैं जो हमेशा पूरी होती हैं। मन्दिर के ठीक बाईं ओर एक खुला मैदान है जहां शुरू में टाँगे इत्यादि खड़े होते थे परन्तु जबसे मोटर गाडिय़ों का प्रचलन शुरू हुआ है, बस स्टैण्ड जहां ही बना दिया गया है। यहां एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ हुआ करता था जिसके नीचे यात्री लोग विश्राम करते थे।

 

पेड़ के ठीक नीचे एक गोलाकार मंच था यहां एक कुटिया केे अलावा पानी की छबील भी थी। कुटिया साधु-महात्मा लोगों केे ठहरने के लिए अपितु छबील आने-जाने वाले लोगों के पानी पीने के लिए थी। दर्शन हेतु आने वाले अथवा दर्शन करके जाने वाले यात्रियों का यहां हर समय जमावड़ा लगा रहता था। गुब्बारे, कुल्फ ी, कुल्चे तथा गोलगप्पे वालों का यहां बहुत अच्छा रोज़गार होता था। इसी प्रकार मन्दिर के ठीक दाईं ओर बहुत बड़ा बट वृक्ष था जिस के नीचे साधु महात्मा लोग हर समय धूनी रमा कर बैठे रहते थे और आने जाने वाले लोग उन महात्माओं को जय शंकर, बम बम भोले तथा हर हर महादेव के जयकारों से संबोधित करते थे। आगे सीढिय़ां उतरकर ढलान का रास्ता देविका का स्पर्श करता है वहां दाहिने तथा बाई दोनों दीवारों पर श्री गणेश जी के मन्दिर थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां यात्री लोग श्रद्धा हेतु देविका नदी में अपने पाँव रखने से पहले माँ देविका से क्षमा मांगते हुए गणेश जी को प्रणाम तथा वापिस आते समय धन्यवाद करते थे। इतना भव्य स्थान जिसका शब्दों में वर्णन असंभव है, कि वर्तमान स्थिति देख कर कोई भी बुद्धिजीवी आंसू बहाए बिना नहीं रह सकता है।

 

वह बरगद का पेड़, गोलाकार चबूतरा, पानी की छबील, कुटिया इत्यादि सब भूतकाल का स्वप्न बन कर रह गए हैं, अर्थात यह स्थान व्यवसायिक संस्थानों का केन्द्र बन गया है। ऐसे ही वट वृक्ष तो वहां ही है परन्तु वह भी दुकानों से घिर गया है। जिसके कारण आने-जाने वाले यात्रियों के लिये रास्ता बिल्कुल ही संकरा हो गया है तथा मेले के दिनों जेबकतरों तथा असामाजिक तत्वों का स्वर्ग बन गया है। जवाहर लाल बडू व अन्य स्थानीय लोगों ने सभी संबंधित अधिकारियों से आग्रह किया है कि पुरमंडल बस स्टैंड की प्राचीन प्रतिष्ठा को बहाल किया जाए ताकि देवस्थान पर आने वाले यात्रियों को पूर्ण रूप से सूख सुविधाएं उपलब्ध हो सकें या फि र बस स्टैंड को किसी ओर स्थान पर स्थानांतरण करने के विकल्प तलाशे जाएं। 

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