नेवी कमांडर अभिलाष टॉमी ने समुद्र में 4 दिन तक लड़ी जिदंगी-मौत की जंग, PM ने भी की थी तारीफ

Edited By Seema Sharma,Updated: 17 Jan, 2019 04:18 PM

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समुद्र के रास्ते दुनिया का चक्कर लगाते हुए गोल्डन ग्लोब रेस के दौरान समुद्री तूफान की चपेट में आने से बुरी तरह घायल हुए नौसेना के कमांडर अभिलाष टॉमी ने कहा कि उन्हें रेस से बाहर होने का मलाल है

नई दिल्ली: समुद्र के रास्ते दुनिया का चक्कर लगाते हुए गोल्डन ग्लोब रेस के दौरान समुद्री तूफान की चपेट में आने से बुरी तरह घायल हुए नौसेना के कमांडर अभिलाष टॉमी ने कहा कि उन्हें रेस से बाहर होने का मलाल है लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे हैं और अगले मौके का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। कमांडर अभिलाष गत वर्ष जून में हुई इस प्रतिष्ठित रेस में समूचे एशिया से केवल अकेले प्रतिभागी थे लेकिन सितंबर में तूफान के कारण नौका पलटने और रीढ की हड्डी में गंभीर चोट के कारण उन्हें दौड़ से बाहर होना पड़ा। क्षतिग्रस्त नौका में चार दिन तक भूखे-प्यासे रहे कमांडर को इस बात की संतुष्टि है कि वह जीवन की रेस जीत गए ओर अब उन्हें अगली दौड़ का बेसब्री से इंतजार है। तूफान के कारण उठी 15 फुट से भी ऊंची लहरों ने उनकी नौका को दो बार उलटा और सीधा पटका जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी और वह चार दिन तक सीधे पड़े रहे तथा हिलडुल नहीं सके।
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कमांडर अभिलाष टॉमी के आगे मौत भी हारी

  • नौसेना के जांबाज अधिकारी कमांडर अभिलाष ने कहा कि उन चार दिनों में एक बार भी उन्हें ऐसा नहीं लगा कि वह बच नहीं पाएगे।
  • उन्होंने कहा कि सेलर होने के नाते उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति थी और उन्हें पूरा विश्वास था कि कोई न कोई उन्हें बचाने जरूर आएगा। वह सोचते थे कि उन्हें आगे भी इस तरह की रेस में हिस्सा लेने के लिए जीवित रहना है।
  • रेस से बाहर होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसका मलाल जरूर है लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे हैं और जैसे ही फिट होंगे वह फिर से अपने अभियान के लिए तैयारी शुरू कर देंगे। उन्होंने कहा कि जिस समय वह रेस से बाहर हुए उस समय उनकी स्थिति काफी अच्छी थी और वह आगे चल रहे दो लोगों से ज्यादा पीछे नहीं थे।
  • अगली गोल्डन ग्लोब रेस 2022 में होनी है और कमांडर के मन में उस रेस को लेकर काफी उत्साह है।
  • गोल्डन ग्लोब रेस में शामिल होने के मानदंड वर्ष 1968 के अनुसार तय किए जाते हैं क्योंकि उस समय समुद्र के रास्ते दुनिया का चक्कर लगाने वाली पहली रेस का आयोजन किया गया था। उस समय जो संचार के उपकरण उपलब्ध थे प्रतिभागियों को वही उपकरण दिए जाते हैं और अत्याधुनिक संचार उपकरणों के बिना ही उन्हें रेस पूरी करनी होती है। उनके पास दिशा सूचक, हेम रेडियो सेट और ऐसा सेटेलाइट फोन होता है जिससे रेस के आयोजकों को केवल लिखकर संदेश भेजा जा सकता है। अगर आपको किसी अन्य व्यक्ति से बात करनी हो तो केवल हेम रेडियो के माध्यम से ही की जा सकती है। कमांडर अभिलाष अपनी शादी के लगभग दो महीने बाद ही इस रेस में शामिल होने के लिए चले गए और इस दौरान वह बमुश्किल एक माह अपनी पत्नी के साथ रह सके।
  • रेस के दौरान जब उनके पास से कोई भाारतीय समुद्री जहाज या ऐसा जहाज गुजरता जिसके चालक दल में भारतीय होते थे तो वह उन लोगों के माध्यम से पत्नी से संपर्क करते थे।
  • वह जहाज पर सवार व्यक्ति को अपना संदेश देते थे जिसका जवाब उनकी पत्नी उस व्यक्ति के फोन पर व्हाटसऐप कर देती थी और वह व्यक्ति इस संदेश की जानकारी कमांडर को देते थे।
  • भावुक होते हुए उन्होंने बताया कि एक बार एक जहाज के चालक दल में एक मलयाली ने अपने जहाज के लाउड स्पीकर के जरिये नौका पर ही रहते हुए उनकी बात पत्नी से कराई।
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  • दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद कमांडर की नौका थुरिया चार दिन तक ऊंची लहरों के थपेड़े खाती रही और चौथे दिन फ्रांस की मछली पकड़ने वाली एक नौका के चालक दल ने उन्हें बचाया।
  • बाद में उन्हें अमस्टर्डम में एक द्वीप में ले जाया गया जहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया और बाद में स्वदेश रवाना किया गया।
  • पिछले चार महीने से उनका उपचार चल रहा है और इस दौरान उनकी रीढ की हड्डी की सर्जरी भी हुई है।
  • अभी वह लगभग 80 फीसदी ठीक हो गए हैं और दो महीने में उनके पूरी तरह फिट होने की संभावना है।
  • नौसेना ने विभिन्न समुद्री अभियानों के लिए गोवा में ‘ओसियन सेलिंग नोड’ बनाई है और कमांडर अभिलाष अभी इस नोड में काम करेंगे। यहां उनका मुख्य काम समुद्री अभियानों के लिए प्रशिक्षण देने का होगा।
  • वह अपनी नौका थुरिया को लेकर भी काफी भावुक दिखाई दिए जिसे उन्हें चोटिल होने के बाद समुद्र में छोड़ना पड़ा।
  • उन्होंने निराशा जाहिर करते हुए कहा कि समुद्र की भयावह स्थिति को देखते हुए लगता है वह डूब गई होगी।

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