नजरिया: क्या राफेल आने से बात बन जाएगी?

Edited By Anil dev,Updated: 14 Dec, 2018 01:39 PM

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद पर कोई संदेह नहीं होने की बात से निश्चित ही मोदी सरकार को एक बड़ी राहत मिली है। विपक्ष ने इस मसले पर सरकार की नाक में दम कर रखा था। अब इस मामले पर  तमाम संदेहों का पटाक्षेप हो जाना चाहिए।

नेशनल डेस्क ( संजीव शर्मा): सुप्रीम कोर्ट द्वारा फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद पर कोई संदेह नहीं होने की बात से निश्चित ही मोदी सरकार को एक बड़ी राहत मिली है। विपक्ष ने इस मसले पर सरकार की नाक में दम कर रखा था। अब इस मामले पर  तमाम संदेहों का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। लेकिन एक चर्चा जो अब भी होनी जरूरी है वो यह कि राफेल आने से क्या हो जाएगा? क्या भारत चीन-पाकिस्तान पर भारी पड़ेगा? इसमें कोई संदेह नहीं कि राफेल आज के समय में दुनिया का सबसे बेहतरीन लड़का है। इसे साढ़े चार जेनरेशन का टैग हासिल है और अभी जो दुनिया में सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान है वो पांच जेनरेशन वाला है। 

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दरअसल  किसी भी लड़ाकू विमान की ताकत उसकी सेंसर क्षमता और हथियार ले जाने पर निर्भर करती है।   राफेल हवा से हवा में 150 और हवा से जमीन पर 300 किलोमीटर तक मिसाइल दाग सकता है। यह अन्यों से बेहतर है। भारत के पास अभी मौजूद सुखोई के मुकाबले भी राफेल की क्षमता ज्यादा है।  पाकिस्तान के पास मौजूद एफ -16 और मिराज जैसे विमानों से तो यह और भी ज्यादा है।राफेल 360 डिग्री पर देख सकता है। और इसकी तकनीक इतनी उन्नत है कि दुश्मन दिखा नहीं कि  पायलट को सिर्फ बटन दबाना है। बाकी काम कम्प्यूटर निशाना अचूक है। ऐसे में  पहली नजर में राफेल आ जाने से भारत पाकिस्तान पर भारी पड़ता दिख सकता है। लेकिन एक बात और है। लड़ाकू विमानों की क्षमता के साथ- साथ उनकी संख्या भी  अहम् पहलू है। इस मामले में पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा लड़ाकू विमान हैं।

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चीन के पास भी भारत से अधिक लड़ाकू विमान हैं। ऐसे में अगले दो साल में  बनकर तैयार होने वाले 272 सुखोई राफेल के मुकाबले ज्यादा काम के हैं क्योंकि उनकी संख्या ज्यादा है और उन्हें ज्यादा जगह भिड़ाया जा सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो 36 राफेल अम्बाला (पाकिस्तान के लिहाज से ) और पश्चिम बंगाल के हासीमारा स्क्वाड्रन (चीन के लिहाज से ) में ही पूरे हो जाएंगे। वायुसेना के 42 स्क्वाड्रन होनी चाहिएं, लेकिन अभी हैं 32 ही। हर स्क्वाड्रन पर अभी 18 -18 लड़ाकू विमान ही मौजूद हैं। यानी कुल 576 लेकिन  यह संख्या पर्याप्त नहीं है।  वायुसेना को इस समय कम से कम एक हजार लड़ाकू विमान चाहिएं। फ्लाइंग कॉफिन कहे जाने वाले मिग विमानों को मिलाकर भी  यह संख्या पूरी नहीं है। यानी महज 36 राफेल आ जाने से कुछ नहीं होने वाला। खासकर अगर आप चीन से मुकाबला करना चाहते हैं तो। भारत ने इससे पहले 1997 में रूस से सुखोई खरीदे थे। यानी बीस साल बाद हम 36 विमान खरीद रहे हैं। यह रफ्तार काफी धीमी है। इसे बढ़ाना ही होगा। हालांकि यह महज भय का कारोबार है। 

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जरूरी नहीं की कभी राफेल का प्रयोग हो भी और यह बिना युद्ध किए रिटायर हो जाएं।  लेकिन सेना को क्षमता तो रखनी पड़ती है। उस लिहाज से अभी चीजे बहुत दूर हैं। हां इस बात का हौसला जरूर रखा जा सकता है की अगले 2 साल में पाकिस्तान के 200 लड़ाकू विमान रिटायर हो जाएंगे। लेकिन चीन  के फ्लीट में कहीं ज्यादा लड़ाकू विमान हैं। ऐसे में सेनाध्यक्ष जिस दोहरे मोर्चे पर लडऩे की बातें करते हैं वो फिलहाल जमीनी हकीकत  मालूम नहीं होतीं। एक बात और, अगर ज्यादा लड़ाकू विमान नहीं खरीदे या बनाए तो हमारे पास वायुसेना की जो 32 स्क्वाड्रन हैं वे चार साल यानी 2022 तक घटकर 25 हो जाएंगी।

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