नजरिया: महागठबंधन की गांठें

Edited By Anil dev,Updated: 30 Jun, 2018 01:42 PM

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ये ठीक वैसे ही है मानो छत डालने से पहले किसी इमारत की दीवारें दरक जाएं, नींव खिसक जाए। राहुल गांधी के महागठबंधन के साथ यही हुआ है। गठबंधन बनने से पहले ही चटख गया है। इस महागठबंधन के सबसे अहम संभावित साथी एनसीपी ने ऐसे किसी गठबंध की सफलता पर सवाल...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): ये ठीक वैसे ही है मानो छत डालने से पहले किसी इमारत की दीवारें दरक जाएं, नींव खिसक जाए। राहुल गांधी के महागठबंधन के साथ यही हुआ है। गठबंधन बनने से पहले ही चटख गया है। इस महागठबंधन के सबसे अहम संभावित साथी एनसीपी ने ऐसे किसी गठबंध की सफलता पर सवाल उठाए हैं। एक मीडिया संवाद के दौरान एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने साफ-साफ कहा है कि 2019 में तीसरा मोर्चा या महागठबंधन व्यवाहरिक नहीं है। उनका यह ब्यान पूर्व प्रधानमंत्री हरदनहल्ली डोडेगौडा देवगौड़ा यानी एचडी देवेगौड़ा के उस ब्यान के ठीक बाद आया है जिसमे उन्होंने महागठबंधन को जल्द से जल्द मूर्तरूप देने की बात कही थी। 
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उल्लेखनीय है कि  बीते दिनों शरद पवार और राहुल गांधी के बीच दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद से ही महागठबंधन की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया था। चूंकि शरद पवार राहुल की मुलाकात की इच्छा पर खुद मुंबई से दिल्ली दौड़े चले आए थे ,लिहाजा मामला ज्यादा तूल पकड़ गया था। लेकिन अब जिस तरह से  शरद पवार ने साफ  शब्दों में कहा कि ऐसा मोर्चा संभव नहीं है उससे इस सारे मामले में रोचक मोड़ आ गया है। शरद पवार ने संवाद के दौरान 1977 के हालत का उदाहरण देते हुए यह संकेत दिया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद स्थितियां वैसी हो सकती हैं। इमरजेंसी से  परेशान भारत ने तब इंदिरा गांधी और कांग्रेस दोनों को उखाड़ फेंका था और चुनाव पश्चात् मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने थे जबकि पहले उनको लेकर ऐसे कोई चर्चा या सहमति नहीं थी। दिलचस्प बाद कैसे मोरार जी देसाई की सरकार चलता हुई वह भी एक इतिहास है।  
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तो क्या राहुल हैं वजह ? 
अब इस लिहाज दो बातें हैं। पहली यह कि शरद पवार और उनके सरीखे  दूसरे नेता जो अपने अपने क्षेत्रों  में क्षत्रप हैं , वे  अपनी शक्ति आंकने के बाद  किसी गठबंधन की तरफ बढऩा चाहते हैं। दूसरा मोरार जी देसाई के बहाने यह उनका नेता और नेतृत्व को लेकर इशारा भी हो सकता है। शायद राहुल गांधी  के नेतृत्व में चुनाव लडऩे का जोखिम फिलवक्त कम  से कम पवार तो नही चाहते। अगर उनके जैसी सोच एक-आध और बड़े  दल की हो गई तो महागठबंधन की रही सही उम्मीदें भी गई मानो।
  PunjabKesariबाद में तो लड़ाई और बढ़ेगी 
ऐसे में लग रहा है कि चुनावपूर्व शायद ही कोई महागठबंधन हो। हां यह संभव है कि स्थान,काल ,पात्र  की तर्ज पर राज्यों में  समझौते / सीट शेयरिंग हो जाए। ऐसा हुआ तो बाद में गठबंधन को लेकर भी दिक्कतें आएंगी। मान लो अगर किसी दल विशेष या किन्हीं एक से अधिक दलों की  कांग्रेस से ज्यादा सीटें आ गईं तो क्या होगा? ऐसी स्थिति में तो मुलायम, लालू , ममता, माया और पवार खुद पीएम कैंडिडेट हो जाएंगे। अब सहज अंदाज़ा लगा लीजिये तब क्या होगा उन परिस्थितियों में ? 

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