कर्नाटक विधानसभा चुनाव:लिंगायत समुदाय की इस सियासी ताकत के आगे झुके सिद्धारमैया

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Mar, 2018 07:14 PM

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विधानसभा चुनाव से पहले सियासत का हर दांव कर्नाटक में खेलना कांग्रेस व बीजेपी की मजबूरी बन गई है। बीजेपी के लगातार निशाने पर रहने के बाद सीएम सिद्धारमैया ने लिंगायत समुदाय के लोगों को अलग धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है। कर्नाटक में...

नेशनल डेस्क ( आशीष पाण्डेय): विधानसभा चुनाव से पहले सियासत का हर दांव कर्नाटक में खेलना कांग्रेस व बीजेपी की मजबूरी बन गई है। बीजेपी के लगातार निशाने पर रहने के बाद सीएम सिद्धारमैया ने लिंगायत समुदाय के लोगों को अलग धर्म का दर्जा देने के सुझाव को मंजूरी दे दी है। कर्नाटक में चुनाव के मद्देनजर इस फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों की संख्या करीब 18 प्रतिशत है। इसके अलावा बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में यह खेमा बीजेपी के पक्ष में था, लेकिन कांग्रेस सरकार के इस कदम के बाद बीजेपी के लिए राज्य में बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग मान ली है। भारतीय जनता पार्टी ने इसकी निंदा करते हुए समाज को बांटने की राजनीति करने का आरोप लगाया है। वहीं कांग्रेस ने इस पर हामी भरकर केंद्र की बीजेपी सरकार के खेमे में गेंद डाल दी है।
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कौन है लिंगायत
कर्नाटक में लिंगायत समाज को अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक में करीब 18 प्रतिशत लिंगायत समुदाय के लोग हैं। राज्य में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस येदियुरप्पा के जनाधार को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। 12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा। बासवन्ना ने वेदों को खारिज कर दिया साथ ही मूर्ति पूजा की भी मुखालफत शुरू कर दी। आम मान्यता यह है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं। वहीं लिंगायतों का तर्क है कि वीरशैव लोगों का असतित्व बासवन्ना के उदय से पहले था और वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं। लिंगायत समुदाय के लोगों का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं। यह एक गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से अपने शरीर से बांधते हैं। लिंगायत इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं।
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राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर सीएम वीरेंद्र पाटील को हटाया 
अस्सी के दशक में लिंगायतों ने राज्य के रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया। जब लोगों को लगा कि जनता दल स्थायी सरकार देने में विफल है तो उन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल का समर्थन किया। 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी और पाटिल सीएम चुने गए, लेकिन एक विवाद के चलते राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही सीएम पद से हटा दिया, जिसके बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया और फिर से हेगड़े का समर्थन किया। हेगड़े के निधन के बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना और 2008 में येदियुरप्पा राज्य के सीएम बने। जब येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो 2013 चुनाव में लोगों ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया। इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा को एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की यही वजह है कि लिंगायत समाज में उनका मजबूत जनाधार है। लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर कांग्रेस ने येदियुरप्पा के जनाधार को कमजोर करने की बड़ी कोशिश की है।
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सियासत में भारी पकड़ रखती है वोक्कालिगा जाति
लिंगायत के बाद कर्नाटक दूसरा बड़ा जातीय समूह है वोक्कालिगा। वोक्कालिगा दक्षिणी कर्नाटक का सबसे बड़ा समुदाय है और इनकी पहचान बड़े जमींदारों के तौर पर है। क्षेत्रीय पार्टी जनता दल सेक्युलर पर इनकी पकड़ मजबूत है. पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं। वोक्कालिगा समुदाय राजनीतिक रूप से कांग्रेस और जनता दल सेक्लुयर के बीच बंटा हुआ है। हालांकि, बीजेपी अपनी इस छवि को तोड़ते हुए कि वह केवल लिंगायत समुदाय पर निर्भर है, वोक्कालिगा समुदाय में भी सेंध लगा रही है। तीसरा जातीय समुदाय है कुरुबा। कर्नाटक में स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इन्हें चरवाहा माना जाता है। ये पूरे कर्नाटक में फैले हुए हैं। हालांकि, राजनीतिक तौर पर इन्हें बहुत ताकतवार तो कभी नहीं माना गया है, लेकिन चूंकि राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसी समुदाय से हैं, इसलिए मौजूदा समय में इनकी ताकत बढ़ी है। अहिन्दा अ—अल्पसंख्यक, ह—हिन्दुलिगा, दा यानी दलित, इन तीनों वर्गों का समर्थन ही पहले मायने रखता था। इसकी राजनीति को ही सिद्धारमैया ने अपनी जीत की धुरी बनाया था लेकिन लिंगायत को धर्म की मान्यता देकर कर्नाटक में एक बार फिर जातिगत सियासी तुफान उठा दिया गया है।
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2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की ताकत
- लिंगायत जाति के 50 विधायक में से 29 विधायक कांग्रेस के और बीजेपी में 10 विधायक थे। 
- बीएस येदियुरप्पा की पार्टी के केवल 6 विधायक चुने गए।
- वोक्कालिगा जाति के 53 विधायक थे, जिनमें से 20 कांग्रेस के थे।
- देवगौ़डा की पार्टी में केवल 18 विधायक वोक्कालिगा थे।
- अनुसूचित जाति के 35 विधायक में से 17 विधायक कांग्रेस थे। 
- अनुसूचित जनजाति के 19 विधायकों में से 11 कांग्रेस के थे।
- ओबीसी के 36 विधायक में से 27 कांग्रेस के थे।
- मुसलमान जाति से 11 विधायक में से 9 कांग्रेस के थे।
- ईसाई, जैन और वैश्य समुदाय के सभी विधायक कांग्रेस के थे।

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