प्रशांत किशोर के करीबियों का दावा, कांग्रेस में नहीं चलती राहुल की

Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Jul, 2017 03:13 PM

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प्रशांत किशोर अपनी दमदार रणनीति की वजह से पहचाने जाते हैं। इन्होंने ही गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाने में रणनीति तैयार की थी

नई दिल्ली: प्रशांत किशोर अपनी दमदार रणनीति की वजह से पहचाने जाते हैं। इन्होंने ही गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाने में रणनीति तैयार की थी लेकिन मोदी-शाह से नाराज होकर ये नीतीश कुमार के साथ जा मिले। किशोर ने बिहार में नीतीश और महागठबंधन को इतना मजबूत कर दिया कि भाजपा बिहार में चारों खाने चित्त हो गई। उसके बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब में चुनावों में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस ने पीके का सहारा लिया। कांग्रेस को पंजाब में तो जीत हासिल हो गई लेकिन उत्तर प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद किशोर कांग्रेस से दूर हो गए। वहीं इन दिनों किशोर वाईएसआर कांग्रेस के लिए सियासी रणनीति बना रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक किशोर ने आंध्र प्रदेश को इसलिए चुना क्योंकि, वहां कांग्रेस लड़ाई में नहीं है। पीके के करीबियों की मानें तो उनको तेलंगाना में भी आमंत्रित किया गया लेकिन वहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है, इसलिए उन्होंने ऑफर ठुकरा दिया दरअसल, पीके कांग्रेस के खिलाफ नहीं जाना चाहते, उनके करीबियों का मानना है कि, पीके और राहुल गांधी में तमाम मुद्दों पर सहमति होती है और रही भी है, लेकिन कांग्रेस राहुल के कहने पर चलती नहीं है। पीके के करीबियों के मुताबिक कांग्रेस हमेशा ही राहुल के उलट रणनीति बनाती है और नतीजा होता है हार। किशोर ने उदाहरण देते हुए कहा कि कांग्रेस ने पंजाब में उनकी रणनीति मानी जिसके चलते वहां आम आदमी पार्टी का सूपड़ा बिल्कुल ही साफ हो गया लेकिन यूपी में राहुल की सहमति के बावजूद कांग्रेस ने अलग रुख अपनाया और चुनाव में उनकी दुर्दशा हुई।

इन अहम मुद्दों पर चर्चा पीके ने की राहुल से चर्चा

-27 साल यूपी बेहाल का नारा और किसान कर्ज माफी का दांव खेलकर कांग्रेस बेहतर कर सकती थी लेकिन पार्टी ने इसके उलट फैसला किया।

-यूपी में प्रियंका गांधी को सीएम उम्मीदवार घोषित करने की रणनीति बनाई गई लेकिन पार्टी तैयार नहीं हुई जिससे हार मिली।

-अगर प्रियंका नहीं तो राहुल गांधी सीएम उम्मीदवार बनाने का भी प्रस्ताव रखा लेकिन पार्टी ने इस बात को भी मानने से इंकार कर दिया।

-इसके बाद शीला दीक्षित के नाम पर किसान यात्रा निकाली गई, तब कांग्रेस की पकड़ होने लगी। लेकिन फिर पार्टी ने रणनीति बदलने को मजबूर किया। जिसके चलते तीन महीने कांग्रेस अच्छे से यूपी में प्रचार नहीं कर पाई जो उसकी सबसे बड़ी हानि साबित हुई।

-राहुल और किशोर दोनों ही सपा से गठबंधन नहीं चाहते थे लेकिन दबाव में आकर तालमेल बैठाने की कोशिश की गई लेकिन सपा के अपने ही कलह के वजह से दोनों पार्टियों की नाव डूब गईं।

पीके के करीबियों ने यह भी साफ किया कि, बिहार के तख्ता पलट में उनकी कोई भूमिका नहीं है। किशोर को बदनाम करनी की कोशिश की जा रही है। सूत्रों के मुताबिक पीके फिर से राहुल के साथ काम करने को तैयार है लेकिन शर्त है कि कांग्रेस और राहुलको उनकी रणनीति पर सहमति बनानी होगी।

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