राजस्थान में कर्मचारियों की नाराजगी BJP को पड़ सकती है भारी

Edited By Anil dev,Updated: 22 Nov, 2018 12:41 PM

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राजस्थान उन प्रदेशों में शुमार है जहां चुनावों का रुख तय करने में सरकारी कर्मचारियों की अहम भूमिका होती है और विधानसभा चुनाव से पूर्व सरकार से नाराजगी का सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

जयपुर: राजस्थान उन प्रदेशों में शुमार है जहां चुनावों का रुख तय करने में सरकारी कर्मचारियों की अहम भूमिका होती है और विधानसभा चुनाव से पूर्व सरकार से नाराजगी का सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को खामियाजा उठाना पड़ सकता है। अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ (एकीकृत) के प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र सिंह ने बातचीत में बताया कि सभी पार्टियां चुनाव से पूर्व कर्मचारियों को लेकर बड़े-बड़े वादे करती है लेकिन सरकार बनने के बाद उस पर अमल नहीं करती है और सरकारी कर्मचारियों की अनदेखी करती है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों से उनकी यही मांग रहती है कि सरकारी कर्मचारियों के कल्याण और संविदा अथवा ठेके पर लगे कर्मचारियों को पक्का करने के मामले अपने घोषणा पत्रों में प्राथमिकता से शामिल करें तथा सरकार बनाने के बाद उसे ईमानदारी से लागू करें। राज्य में बड़ी संख्या में कर्मचारी विभिन्न सरकारी महकमों में कई साल से ठेके पर काम कर रहे हैं और उनकी कोई सुध लेना वाला नहीं है। 

वसुंधरा सरकार के प्रति है सरकारी कर्मचारियों को नाराजगी
सिंह ने वसुंधरा सरकार के प्रति सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कर्मचारियों की सरकार से कई मांगे हैं जो समयाभाव और संवादहीनता के कारण पूरी नहीं की जा सकी हैं। इसको लेकर लगातार कर्मचारियों ने प्रदर्शन किये। उन्होंने कहा कि राज्य में आचार संहिता लागू है इसलिए कर्मचारी किसी भी प्रकार से अपना रोष प्रकट नहीं कर सकता है। उन्होंने वसुंधरा सरकार के प्रति अपनी नाराजगी सीधे तौर पर तो नहीं जतायी लेकिन इतना जरूर कहा कि कर्मचारी बहुत सूझबूझ रखते हैं इसलिए सब कुछ मतदान में पता चलेगा।  अखिल राजस्थान स्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष आर के अग्रवाल ने बताया कि वसुंधरा सरकार की नीतियों को लेकर स्कूली शिक्षकों में जबरदस्त नाराजगी है। उन्होंने कहा कि राज्य भर में करीब 27 हजार सरकारी स्कूलों को बंद अथवा एक दूसरे स्कूलों में मिला दिया गया इससे करीब एक लाख पद कम हो गए। सरकार जानबूझकर पदों को कम कर रही है ताकि नई नौकरियां नहीं दी जा सके। 

स्कूली बच्चों को भी करना पड़ता है भारी दिक्कतों का सामना
अग्रवाल ने कहा कि राजस्थान के जैसलमेर, बाडमेर, धौलपुर तथा अन्य इलाकों में गर्मी के दिनों में तापमान 45 से 49 डिग्री तक पहुंच जाता है और सरकार ने राज्य में स्कूलों का समय सुबह आठ बजे से लेकर दोपहर दो बजकर दस मिनट तक कर दिया है। स्कूलों का समय बढ़ाने से न केवल शिक्षकों बल्कि स्कूली बच्चों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में भीषण गर्मी में बच्चों को स्कूल से पैदल अपने घरों में जाना पड़ता है क्योंकि इन इलाकों में सवारी का कोई साधन नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार ने स्कूल से संबंधित प्रशासनिक ढांचे में भी परिवर्तन किया है। प्राथमिक और उच्च शिक्षा के प्रशासनिक कार्यों को एक साथ कर दिया है इससे अधिकारियों के पदों में बढोतरी हो गयी है लेकिन कर्मचारियों के पद कम हो गए हैं। शिक्षा संकुल में पहले 127 कर्मचारी थे जो अब 27 रह गए हैं यानी एक-एक बाबू के पास दस-दस काम सौंप दिए गए हैं। सरकार ने तीन सौ स्कूलों को निजी हाथों में देने की योजना बना ली थी लेकिन शिक्षकों और कर्मचारियों के सतत संघर्ष के बाद सरकार ने अपने फैसले को स्थगित किया है। 

सरकार की नीतियों के खिलाफ है भारी रोष
उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों के खिलाफ शिक्षकों के साथ-साथ अन्य कर्मचारियों में भारी रोष है और इसका परिणाम विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा। गौरतलब है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान से पहले ही हड़ताल पर गए सरकारी कर्मचारियों ने हड़ताल खत्म करने की घोषणा कर दी थी। इतना ही नहीं उन्होंने अहम एलान करते हुए कहा कि आगामी चुनाव में वो भाजपा का समर्थन नहीं करेंगे। उनका कहना था कि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए कर्मचारी इस चुनाव में अपना फैसला सुनाएंगे। दरअसल राजस्थान में हड़ताल पर गए ज्यादातर सरकारी कर्मचारियों की मांग सातवां वेतन आयोग लागू कराने, नई भर्ती, सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले पे-ग्रेड को बढ़ाने समेत कई मांग सरकार के सामने रखी थी। उनका आरोप था कि प्रदेश की वसुंधरा राजे सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। 

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