Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Feb, 2018 02:33 PM
राजस्थान विधानसभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सोमवार को विवादास्पद ‘दंड विधियां संशोधन विधेयक’ को सदन की प्रवर समिति से वापस लेने की घोषणा की। विवादास्पद दंड विधियां संशोधन विधेयक को लेकर विपक्ष सहित कई जनसंगठनों ने सरकार पर तीखे प्रहार किए थे।...
जयपुरः राजस्थान विधानसभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सोमवार को विवादास्पद ‘दंड विधियां संशोधन विधेयक’ को सदन की प्रवर समिति से वापस लेने की घोषणा की। विवादास्पद दंड विधियां संशोधन विधेयक को लेकर विपक्ष सहित कई जनसंगठनों ने सरकार पर तीखे प्रहार किए थे। सदन में वसुंधरा राजे द्वारा पेश बजट पर चर्चा का जवाब के दौरान कहा कि जिस विधेयक को हमने प्रवर समिति को भेजा और अध्यादेश की अवधि समाप्त हो गई। फिर भी हम इसे प्रवर समिति से वापस ले रहें है। बता दें कि पिछले साल राजस्थान सरकार ने 6 सितम्बर 2017 को यह अध्यादेश लाई थी और इसे 23 अक्तूबर 2017 को विधानसभा में पेश किया गया था।
क्या था विवादित विधेयक
इस बिल के मुताबिक कोई भी राज्य के सेवानिवृत्त एवं सेवारत न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और लोकसेवकों के खिलाफ ड्यूटी के दौरान किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकता था। इसके तहत लोक सेवक के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए सरकार से अभियोजन स्वीकृति पहले लिए जाने का प्रावधान किया गया। इसकी सीमा 180 दिन तय की गई। सरकार से मंजूरी के बिना पुलिस किसी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कर सकती थी। कोर्ट भी इस्तगासे और प्रसंज्ञान से अनुसंधान के आदेश नहीं दे सकते थे।
पूर्व में गजटेड अफसर को लोक सेवक माना जाता था लेकिन सरकार ने संशोधित बिल में इस दायरे को बढ़ा दिया। इसमें यह भी कहा गया था कि अगर किसी ने बिना सरकार की अनुमति के अधिकारी का नाम उजागर किया तो उसे दो साल की सजा तक हो सकती थी। राज्य में लगातार इस बिल का विरोध हो रहा था। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने हाईकोर्ट में बिल के खिलाफ सात याचिकाएं लगाई थीं. हालांकि, 4 दिसंबर को अध्यादेश स्वत: समाप्त हो गया था। जिसेक चलते वसुंधरा राजे ने इसे वापिस लेने की घोषणा की।