तमिल राजनीति की शून्यता क्या भर पाएंगे रजनीकांत और कमल हासन?

Edited By shukdev,Updated: 08 Aug, 2018 08:47 PM

rajinikanth and kamal haasan will fill the vacuum of tamil politics

तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से द्विध्रुवी रही है। आज़ादी से पहले कांग्रेस और जस्टिस पार्टी के बीच सत्ता परिवर्तन होता था। आज़ादी के बाद से चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक (डीएमके) और अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके) के करिश्माई नेताओं का वर्चस्व रहा है। पिछले तीस साल...

नेशनल डेस्क (मनीष शर्मा):तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से द्विध्रुवी रही है। आज़ादी से पहले कांग्रेस और जस्टिस पार्टी के बीच सत्ता परिवर्तन होता था। आज़ादी के बाद से चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक (डीएमके) और अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके) के करिश्माई नेताओं का वर्चस्व रहा है। पिछले तीस साल से करूणानिधि और जयललिता ही तमिल राजनीति का चेहरा बने हुए थे। 2016 में एआईडीएमके अध्यक्ष जयललिता का निधन हो गया और अब डीएमके प्रमुख करुणानिधि हमारे बीच नहीं रहे।

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एआईडीएमके का भविष्य

एआईडीएमके इस समय कई गुटों में बंट गया है। जयललिता की मौत के तुरंत बाद एआईडीएमके दो ग्रुप में बंट गया - शशिकला ग्रुप और पनीरसेल्वम ग्रुप। दोनों गुटों के बीच सत्ता को लेकर खींचतान हुई। समझौते के बाद दोनों ग्रुप ने मिलकर सरकार का गठन किया। जिसमें के पलानीस्वामी सीएम और ओ पनीरसेल्वम उप मुख्यमंत्री बने थे। वीके शशिकला को जेल जाना पड़ा। शशिकला इस समय जेल में है। वी के शशिकला के भाई वी दिवाकरण ने नई पार्टी 'अन्ना द्रविदाड़ कषगम'  का गठन किया है। इससे पहले शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरण ने' अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम' (एएमएमके) का गठन किया था।PunjabKesari
करूणानिधि का वारिस कौन

वैसे तो करूणानिधि ने अपना वारिस एम् के स्टालिन को घोषित कर दिया था लेकिन आने वाले दिनों में उन्हें अपने भाई अलागिरी से चुनौती मिल सकती है। स्टालिन के नेतृत्व में ही डीएमके ने 2016 का विधानसभा चुनाव लड़ा और पार्टी को लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। अलागिरी यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे थे और उन्हें 2014 में पार्टी से निकाल दिया गया था। राज्य सभा सांसद कनिमोझी, ए राजा और दयानिधि मारन से फिलहाल स्टालिन को कोई खतरा नहीं है क्योनी वे राज्य से ज़्यादा केंद्र की राजनीति में सहज दिखते हैं।PunjabKesari

कमल हासन और रजनीकांत भरेंगे तमिल राजनीति की शून्यता?

एआईडीएमके और डीएमके की अंदर हो रही टूट से तमिलनाडु की राजनीती में शून्यता आना स्वाभाविक है। इस जगह को वही लोग भर सकते है जो इनकी तरह करिश्माई नेता हो और जिनकी जनता में पकड़ मजबूत हो। दो नाम जो उभर कर आते हैं वो है रजनीकांत और कमल हासन।  तमिल राजनीति में हमेशा तमिल सिनेमा ने प्रभावशाली भूमिका निभाई है। करूणानिधि, एमजी रामचंद्रन और जयललिता फ़िल्मी बैकग्राउंड से थे। दक्षिण भारतीय की राजनीति की खासयित यह है कि वहां की जनता फ़िल्मी कलाकारों को भगवान का दर्जा देती है। उनसे अपने आप को जुड़ा महसूस करती है।
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रजनीकांत और कमल हासन का प्रभाव तमिल की जनता में कितना है यह किसी से छुपा नहीं है। रजनीकांत ने राजनीति में आने की घोषणा तो कर दी है पर अभी पार्टी का गठन नहीं किया है। अभी हाल ही में इंडिया टुडे के सर्वे में सामने आया था कि 17% अन्नाद्रमुक के वोटर रजनीकांत को वोट करना चाहते हैं । वही कमल हासन ने अपनी पार्टी 'मक्कल नीधि मय्यम' रखा, जिसका अर्थ होता है लोक न्याय केंद्र पार्टी । सिनेमा के बाद अब सियासत में इन दो महारथियों का जो मुक़ाबला होगा वो बहुत ही दिलचस्प होगा।

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