Edited By Pardeep,Updated: 06 Feb, 2021 05:01 AM
‘जब मैं किसी को रोते हुए देखता हूं तो मुझे लगता है कि वो बंदा बहुत कमजोर है’, अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2015 में पीपुल्स मैगजीन से यह कहा था। उन्होंने कहा था-‘आखिरी बार मैं तब रोया था जब मैं बच्चा था।’ परंतु ट्रम्प अपने ही संसार...
नई दिल्लीः ‘जब मैं किसी को रोते हुए देखता हूं तो मुझे लगता है कि वो बंदा बहुत कमजोर है’, अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2015 में पीपुल्स मैगजीन से यह कहा था। उन्होंने कहा था-‘आखिरी बार मैं तब रोया था जब मैं बच्चा था।’ परंतु ट्रम्प अपने ही संसार में रह रहे थे। उन्हें आंसुओं की ताकत का अंदाजा नहीं था। दुनियाभर में ऐसे दर्जनों राजनेता हैं जिन्होंने अपने आंसुओं से करोड़ों लोगों को हिला दिया था। जब सब तरफ अंधेरे का वर्चस्व था तो ऐसे में उनके आंसुओं ने अपने लोगों को साहस और धैर्य दिया, निराशा में एक आशा प्रदान की और कई बार इतिहास की धारा बदल दी।
अब्राहम लिंकन से लेकर बराक ओबामा तक, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सबकी आंखों से कभी न कभी आंसू छलके थे। किसकी आंखें किसलिए भीगीं, सबका अपना-अपना कारण रहा है। मोदी उस समय रुआंसे हो गए थे जब वह संसद में भाजपा के सांसदों को संबोधित कर रहे थे। 56 इंच की छाती वाले इस राजनेता की आंखें इससे पहले 2014 में भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने पर भर आई थीं।
कर्नाटक से ‘एक गरीब किसान’ एच.डी. देवेगौड़ा संसद में रो पड़े थे। भगवा-धारी योगी आदित्यनाथ, जो भारत के ‘बलवीर’ समझे जाते हैं, 2007 में उत्तर प्रदेश में अपने साथ हुए अन्याय की गाथा सुनाकर संसद में फूट-फूटकर रोए थे। लोकसभा में वो दिन उनके नाम रहा और 10 साल बाद वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं और अब उनके कारण समाजवादी पार्टी के नेता लखनऊ में आंसू बहा रहे हैं। आंसुओं की ताकत क्या होती है, दुनिया ने एक बार फिर पिछले महीने देखा जब 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली और लाल किले पर हिंसा के बाद लाखों किसान दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन को छोड़कर वापस अपने घरों को लौटने लगे थे और किसान आंदोलन धीरे-धीरे दम तोडऩे लगा था।
ऐसे में किसान नेता राकेश टिकैत ने आंसू बहाते हुए अपने किसान भाइयों के लिए अपनी जान दे देने की धमकी देकर किसान आंदोलन में फिर से नई जान फूंक दी। उनके आंसुओं की धारा में बहकर न केवल किसान धरना स्थल पर वापस लौट आए बल्कि राकेश टिकैत किसानों के निर्विवाद मुख्य वार्ताकार के रूप में उभर आए हैं। वो दिन अब नहीं रहे जब टिकैत विभिन्न यूनियनों के उन 40 किसानों में से एक थे जो सरकार से बातचीत कर रहे हैं। उनका कद बढ़ गया है और अब वह अधिक मृदु लहजे में बात करने लगे हैं। ऐसे संकेत हैं कि कृषि कानूनों को लेकर कोई न कोई बीच का रास्ता निकाला जाए ताकि आंदोलनकारी किसानों और सरकार दोनों का सम्मान बरकरार रहे।