राम मंदिर मुद्दाः शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार ला सकती है विधेयक!

Edited By Yaspal,Updated: 19 Oct, 2018 12:56 AM

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राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार पर 'घर के अंदर' ही चौतरफा दबाव बनता जा रहा है कि वो राम मंदिर के निर्माण के लिए सदन में कानून लाए और अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ...

नेशनल डेस्कः  राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार पर 'घर के अंदर' ही चौतरफा दबाव बनता जा रहा है कि वो राम मंदिर के निर्माण के लिए सदन में कानून लाए और अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। इस संभावना पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में मोहन भागवत के बयान से अंतिम मुहर लगी। संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में कहा कि राम मंदिर के लिए कानून बनाना चाहिए। अगर भागवत यह बात कर रहे हैं तो वो एक तरह से सीधे सरकार को इशारा कर रहे हैं कि संघ और भाजपा के समर्थकों और राम के प्रति आस्था रखने वालों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार को सदन में राम मंदिर के लिए कानून लाना चाहिए।

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मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव कम नहीं है। कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को जवाब देने से लेकर खुद को मंदिर निर्माण के लिए प्रतिबद्ध दिखाना भाजपा के लिए जरूरी होता जा रहा है। दूसरी ओर, संतों ने सरकार को इस मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है कि मंदिर निर्माण में देरी वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। संतों का कहना है कि क्या भाजपा मंदिर निर्माण का अपना वादा  भूल गई और क्यों सुप्रीम कोर्ट के फैसले के इंतजार करने की बात पार्टी की ओर से बार-बार की जा रही है। 

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ध्यान रहे कि संतों के एक बड़े वर्ग और राम मंदिर आंदोलन से जुड़े मतदाताओं ने इस वर्ष 6 दिसंबर से अयोध्या में मंदिर निर्माण की घोषणा कर दी है। संत समाज का कहना है कि वो मंदिर निर्माण का काम शुरू कर देंगे। सरकार रोकना चाहती है तो रोके। संतों का यह आह्वान सरकार के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार और राज्य में योगी सरकार के लिए बहुत मुश्किल होगा कि संतों को रोकने के लिए वे किसी भी प्रकार का बल प्रयोग करें। इससे भाजपा को अपने समर्थकों के बीच खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है। 

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संत समाज की इस घोषणा को संघ प्रमुख के आज के भाषण से एक तरह की वैधता मिल गई है। संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि वो राम मंदिर के लिए कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करना चाहता और सरकार इसके लिए कानून लाकर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। ऐसी स्थिति में भाजपा के पास अब एक ही रास्ता बचता नजर आ रहा है और वो यह है कि राम मंदिर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्थापित करने के लिए मोदी सरकार सदन के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर के विधेयक को रखे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इससे भाजपा को लाभ ही होगा। पहला लाभ यह कि सरकार लोगों के बीच चुनाव से ठीक पहले यह स्थापित करने में सफल होगी कि उसकी मंशा राम मंदिर के प्रति क्या है। इससे मतदाताओं में संदेश जाएगा कि कम से कम भाजपा और मोदी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के प्रतिबद्ध हैं।

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दूसरा लाभ यह है कि विपक्ष के लिए यह एक सहज स्थिति नहीं होगी। विपक्ष इस पर टूटेगा। कांग्रेस के लिए यह आसान नहीं होगा कि वो राम मंदिर पर प्रस्ताव का विरोध करके अपनी सॉफ्ट हिदुत्व वाली छवि को मिट्टी में मिला दे। इससे विपक्ष में बिखराव भी होगा और सपा, बसपा जैसी पार्टियों के वोट बैंक में भी सेंध लगेगी। ध्यान रहे कि संतों और मतदाताओं के बीच संदेश देने के लिए चुनाव के ठीक पहले मोदी सरकार के सामने यह एक अहम और अंतिम मौका है। जनवरी से प्रयाग में शुरू हो रहे कुंभ के दौरान भी सरकार को संत समाज के सामने मंदिर के प्रति अपनी जवाबदेही स्पष्ट करनी होगी।

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बता दें कि मोदी सरकार का आगामी शीतकालीन सत्र इस सरकार का अंतिम सत्र होगा। इसके बाद सत्र एक बजट और एक मध्यावधि बजट के साथ समाप्त हो जाएगा। साथ ही, देश में लोकसभा चुनाव का शंखनाद शुरू हो जाएगा। चुनाव से ठीक पहले अपने मतदाताओं के बीच राम मंदिर के लिए विश्वास जताना सरकार के लिए जरूरी है। देखना यह है कि सरकार इस विश्वास को जताने के लिए किस सीमा तक जाती है। 

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