Rama Ekadashi 2021: महापाप को नष्ट करने से लेकर सौभाग्य देगी ये कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Nov, 2021 09:45 AM

rama ekadashi vrat katha

आज 24 अक्टूबर गुरुवार, कार्तिक मास के कृष्णपक्ष पर रमा एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन श्री हरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है। कहते हैं जो व्यक्ति इस व्रत को करता है

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Rama Ekadashi 2021: आज 1 नवंबर, सोमवार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष पर रमा एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन श्री हरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है। कहते हैं जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्यवती महिलाओं का सौभाग्य अखंड रहता है। यदि आप व्रत नहीं कर सकते तो व्रत कथा अवश्य पढ़ें या सुनें। रमा एकादशी व्रत कथा बहुत ही फलदायी है। जो भी इसे पढ़ता या सुनता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी इस एकादशी के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं।

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रमा एकादशी व्रत की कथा
इस कथा का उल्लेख श्रीपद्म पुराण में इस प्रकार हुआ है- प्राचीन समय में मुचुकुन्द नाम का एक राजा था जिसकी मित्रता देवराज इंद्र, यम, वरुण, कुबेर एवं विभीषण के साथ थी। वह बड़ा धार्मिक प्रवृत्ति वाला एवं सत्यप्रतिज्ञ था। उसके राज्य में सभी सुखी थे। उसकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी जिसका विवाह राजा मुचुकुन्द ने राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ कर दिया था। एक दिन शोभन अपने श्वसुर के घर आया तो संयोगवश उस दिन एकादशी व्रत था। शोभन ने एकादशी व्रत को करने का निश्चय किया। चंद्रभागा को यह चिंता हुई कि उसका अति दुर्बल पति भूख को कैसे सहन करेगा? इस विषय में उसके पिता के आदेश बहुत सख्त थे। राज्य में सभी एकादशी का व्रत रखते थे और कोई अन्न का सेवन नहीं करता था।

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शोभन ने अपनी पत्नी से कोई ऐसा उपाय जानना चाहा जिससे उसका व्रत भी पूर्ण हो जाए और उसे कोई कष्ट भी न हो लेकिन चंद्रभागा उसे ऐसा कोई उपाय न सुझा सका।

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निरुपाय होकर शोभन ने स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़कर व्रत रख लिया लेकिन वह भूख, प्यास सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। इससे चंद्रभागा बहुत दुखी हुई। पिता के विरोध के कारण वह सती नहीं हुई। उधर शोभन ने रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत के शिखर पर एक उत्तम देवनगर प्राप्त किया। वहां ऐश्वर्य के समस्त साधन उपलब्ध थे। गंधर्वगण उसकी स्तुति करते थे और अप्सराएं उसकी सेवा में लगी रहती थीं। एक दिन जब राजा मुचुकुन्द मंदराचल पर्वत पर आया तो उसने अपने दामाद का वैभव देखा। वापस अपनी नगरी आकर उसने चंद्रभागा को पूरा हाल सुनाया तो वह अत्यंत प्रसन्न हुई। वह अपने पति के पास चली गई और अपनी भक्ति और रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।  

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