Edited By Anil dev,Updated: 11 May, 2019 09:03 AM
देश में दल-बदल विरोधी कानून लागू होने से पहले दल-बदलुओं ने सियासत को इस कदर बदनाम कर दिया था कि 1967 में दल-बदलुओं की हरकतों के कारण हरियाणा की सरकार ही भंग हो गई थी
इलैक्शन डैस्क: देश में दल-बदल विरोधी कानून लागू होने से पहले दल-बदलुओं ने सियासत को इस कदर बदनाम कर दिया था कि 1967 में दल-बदलुओं की हरकतों के कारण हरियाणा की सरकार ही भंग हो गई थी और विशाल हरियाणा पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री बने राव बिरेंद्र सिंह की सरकार गिरी और विधानसभा के तमाम सदस्यों को 8 माह के भीतर ही सदस्यता गंवानी पड़ी। ऐसा विधानसभा के 81 सदस्यों में से 44 सदस्यों द्वारा दल-बदल किए जाने के कारण हुआ था।
सरकार के गठन के 8 महीने में दल-बदल की इतनी घटनाएं हुईं कि सरकार अस्थिर हो गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। हरियाणा में दल-बदल करने वालों में आजाद विधायकों के अलावा विशाल हरियाणा पार्टी और कांग्रेस के विधायक भी शामिल थे। इनमें से एक विधायक ने 5 बार, 2 विधायकों ने 4 बार, 3 विधायकों ने 3 बार और 34 विधायकों ने एक बार पार्टी बदली।
इस लिहाज से कुल 64 बार दल-बदल हुआ और हर महीने औसतन दल-बदल के 8 मामले सामने आए। करीब 5 महीने के राष्ट्रपति शासन के बाद मई 1968 में जब दोबारा चुनाव हुआ तो चुनाव का मुद्दा ‘स्थिर सरकार’ और ‘दल-बदलुओं को बाहर रखो’ था। इस चुनाव के दौरान कांग्रेस को 48 सीटें हासिल हुईं और 22 मई 1968 को बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।