Edited By Pardeep,Updated: 22 Dec, 2019 05:50 AM
केरल में मजदूरी के लिए आए पूर्वी राज्यों के मजदूर तेजी से पयालन कर रहे हैं। इसका कारण भयानक मंदी को बताया जा रहा है। निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजूदरों को काम नहीं मिल रहा है और वे पलायान करने को मजबूर हैं। बिहार से केरल में आकर काम करने...
तिरुवनंतपुरम: केरल में मजदूरी के लिए आए पूर्वी राज्यों के मजदूर तेजी से पयालन कर रहे हैं। इसका कारण भयानक मंदी को बताया जा रहा है। निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजूदरों को काम नहीं मिल रहा है और वे पलायान करने को मजबूर हैं।
बिहार से केरल में आकर काम करने वाले मजदूर दिवाकर कुमार (26) का फोन बजता है तो वह जवाब नहीं देता है क्योंकि उसे पता है कि कौन किसलिए फोन कर रहा है। कोच्चि के बाहरी इलाके में रहने वाले कुमार ने कहा, ‘वह मेरी पत्नी का फोन था। वह चाह रही है कि मैं उसे 5000 रुपए भेजूं ताकि वह अपने लिए और मेरे बच्चों व बुजुर्ग माता-पिता के लिए पांच कंबल खरीद सके। मैं किस प्रकार पैसे का प्रबंध करूं। पिछले साल इस समय मैं 15000 रुपए घर भेजता था। इस समय मैं प्रति माह 3000 रुपए भेजने के लिए भी संषर्घ कर रहा हूं। यहां कोई काम नहीं बचा है।’ आर्थिक मंदी के कारण केरल में काम करने आए मजदूरों की स्थिति बहुत खराब है।
सरकार के 2013 के सर्वे के मुताबिक केरल में 25 लाख प्रवासी मजदूर हैं। इनमें से अधिकांश निर्माण क्षेत्र में काम करते हैं। इसके अलावा बुहत से लोग होटलों व रेस्टोरेंट में काम करते हैं। कुमार कोच्चि में पिछले तीन वर्षों से निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करते हैं। लेकिन अब उसका कहना है कि वह बिहार के लखीसराय जिले के बभनगांवा गांव में अपने परिवार का भरण-पोषण बहुत मुश्किल से कर पा रहा है। उसका कहना है कि उसके गांव से करीब 40 लोग काच्चि में काम कर रहे थे। अब पिछले तीन महीने में इनमें से 25 गांव लौट गए हैं। पिछले सप्ताह उसे सिर्फ दो दिन काम मिला।
उसका कहना है कि यदि यही स्थिति रही तो उसके गांव के बाकी मजदूरों को भी वापस लौटना होगा। वहीं बिहार के ही नवादा से आए 35 वर्षीय श्रवण कुमार का कहना है कि उसे पांच दिनों से कोई काम नहीं मिला है। उसका कहना है, ‘मैं यहां पांच वर्षों से हूं, लेकिन इस प्रकार की परिस्थिति कभी नहीं थी। मेरे कमरे में सात अन्य लोग थे और वे सभी वापस लौट गए हैं। हमारे ठेकेदार कहते हैं कि कोई काम नहीं है। पिछले साल दैनिक मजदूरी लगभग 800 रुपए थी और अब यह 600 रुपए है। इसके बावजूद हमें सप्ताह में केवल दो या तीन दिन ही काम मिलता है। हमारे पास घर भेजने के लिए पैसा नहीं है।’