कांग्रेस के चरित्र में है आपातकाल का DNA: रविशंकर प्रसाद

Edited By Anil dev,Updated: 26 Jun, 2018 03:55 PM

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आपातकाल की 43वीं बरसी के मौके पर कांग्रेस पर हमला बोलते हुए मंगलवार को कहा कि पार्टी ने भले ही इस कृत्य के लिए माफी मांग ली है लेकिन उसकी चाल, चरित्र एवं आचरण में आपातकाल का डीएनए अब भी दिखायी देता है।

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आपातकाल की 43वीं बरसी के मौके पर कांग्रेस पर हमला बोलते हुए मंगलवार को कहा कि पार्टी ने भले ही इस कृत्य के लिए माफी मांग ली है लेकिन उसकी चाल, चरित्र एवं आचरण में आपातकाल का डीएनए अब भी दिखायी देता है।  

इंदिरा गांधी को बचाने के लिए लगाया था आपातकाल 
केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि आपातकाल के 43 साल बीतने के बाद आज का स्वाभाविक प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस के स्वभाव में कोई परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने भले ही एक बार इसके लिए माफी मांगी है लेकिन चाल, चरित्र और आचरण उसी प्रकार है। कांग्रेस के डीएनए में आपातकाल के संस्कार साफ दिखते हैं। श्री प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस चुनाव हारती है तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और चुनाव आयोग खराब हैं। जीते तो सब ठीक है। सेना प्रमुख पर हमला करते हैं। चुनाव आयोग एवं मुख्य चुनाव आयुक्त तक को निशाना बनाते हैं। न्यायपालिका के साथ उनका व्यवहार धमकाने वाला रहा है। उन्होंने कहा कि बार-बार पराजित कांग्रेस अदालत के गलियारे से देश नहीं चला सकती है। कांग्रेस के इस प्रकार के आचरण से आपातकाल के जख्म 43 साल बाद आज भी हरे हैं। प्रसाद ने आपातकाल के दिनों की यादों को साझा करते हुए कहा कि उस समय भी कांग्रेस ने केवल और केवल इंदिरा गांधी को बचाने के लिए आपातकाल लगाया था। 

आपातकाल में प्रेस को भी दबाया गया था
उन्होंने कहा कि आपातकाल में संविधान संशोधनों के माध्यम से गांधी को बचाने के प्रावधान लाए गए थे। कांग्रेस में परिवार के प्रति निष्ठा चरम पर पहुंच गई थी कि स्वर्ण सिंह, जगजीवन राम आदि बड़े नेताओं को भी मुंह खोलने नहीं दिया गया।  उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौर में देश में चापलूसी की संस्कृति पैदा की गई और उसकी अगुवाई तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने की थी। बहुत से लोगों ने आपातकाल को ‘अनुशासन पर्व’ भी कहा था। लोगों पर आतंरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के अंतर्गत गिरफ्तारी की तलवार लटका दी गई थी। तब किसी को भी अपील, वकील और दलील का अधिकार नहीं रह गया था।  उन्होंने कहा कि आपातकाल में प्रेस को भी इस प्रकार से दबाया गया था कि अधिकांश पत्रकारों के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि जब उन्हें झुकने को कहा गया तो वे रेंगने लगे। 

आपातकाल के घटनाक्रम को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए
उन्होंने कहा कि चंद पत्रकार -कुलदीप नैयर, रामनाथ गोयनका, सी आर ईरानी और के. आर. मल्कानी ऐसे पत्रकार थे जो उस समय भी सरकार के सामने तन कर खड़े हुए। प्रसाद ने कहा कि आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष एक इंसान की आकाादी, प्रेस की आजादी और न्यायपालिका की आजादी सुनिश्चित करने की लड़ाई थी। उन्होंने प्रसिद्ध पत्रकार कूमी कपूर की पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि आपातकाल भले 25 और 26 जून 1975 की दरम्यिानी रात में लगा था लेकिन यह योजना छह माह पहले जनवरी में ही बन चुकी थी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने उस सुझाव का स्वागत किया कि आपातकाल के घटनाक्रम को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी लोकतंत्र के सामने संभावित खतरों को लेकर हमेशा सजग रहे। 
 

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