सुधारों का मतलब श्रम कानूनों को पूरी तरह समाप्त करना नहीं

Edited By Yaspal,Updated: 24 May, 2020 07:17 PM

reforms do not mean complete abolition of labor laws

विभिन्न राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर विभिन्न हलकों से चिंता जताई जा रही है। नीति आयोग ने इस बारे में चीजों को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए कहा है कि सरकार श्रमिकों के हितों का संरक्षण करने को प्रतिबद्ध है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष...

नई दिल्लीः विभिन्न राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर विभिन्न हलकों से चिंता जताई जा रही है। नीति आयोग ने इस बारे में चीजों को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए कहा है कि सरकार श्रमिकों के हितों का संरक्षण करने को प्रतिबद्ध है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने साक्षात्कार में कहा कि सुधारों का मतबल श्रम कानूनों को पूरी तरह समाप्त करना नहीं है। हाल के सप्ताहों में उत्तर प्रदेश और गुजरात सहित विभिन्न राज्य सरकारों ने मौजूदा श्रम कानूनों में या तो संशोधन किया है या संशोधन का प्रस्ताव किया है। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों की वजह से उद्योग जगत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। उद्योग और कंपनियों को राहत के लिए राज्य सरकारों द्वारा यह कदम उठाया गया है।

कुमार ने कहा, ‘‘मेरा संज्ञान में अभी आया है कि केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने अपने रुख को सख्त करते हुए राज्यों को स्पष्ट किया है कि वे श्रम कानूनों को समाप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) में हस्ताक्षर करने वाले देशों में है।'' उन्होंने कहा कि ऐसे में स्पष्ट है कि केंद्र सरकार का मानना है कि श्रम कानूनों में सुधार से मतलब श्रम कानूनों को समाप्त करने से नहीं है। सरकार श्रमिकों के हितों का संरक्षण करने को प्रतिबद्ध है। उनसे पूछा गया था कि क्या उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों द्वारा श्रम सुधार श्रमिकों के लिए किसी तरह का सुरक्षा जाल बनाए बिना किए जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल में एक अध्यादेश के जरिये विभिन्न उद्योगों को तीन साल तक कुछ निश्चित श्रम कानूनों से छूट दी है।
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कोरोना वायरस की वजह से प्रभावित आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार देने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी राष्ट्रव्यापी बंद के बीच आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन के लिए कुछ श्रम कानूनों में बदलाव किया है। कुछ और राज्य भी इसी तरह का कदम उठाने जा रहे हैं। देश की वृहद आर्थिक स्थिति पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि शेष दुनिया की तरह भारत भी कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव से जूझ रहा है। इस महामारी की वजह से चालू वित्त वर्ष के पहले दो माह के दौरान आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।

रिजर्व बैंक ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर नकारात्मक रहेगी। इस पर कुमार ने कहा कि नकारात्मक वृद्धि का अभी पूरी तरह अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अभी घरेलू और वैश्विक मोर्चे पर बहुत सी चीजें ‘अज्ञात' हैं। कुमार ने कहा कि सरकार के 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का मकसद सिर्फ उपभोक्ता मांग नहीं, बल्कि कुल मांग में सुधार लाना है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ने प्रणाली में नकदी बढ़ाने के कई उपाय किए हैं।

वित्त मंत्री भी बैंकों को ऋण का प्रवाह बढ़ाने को प्रोत्साहित कर रही हैं। इससे अर्थव्यवस्था की कुल मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि अब महत्वपूर्ण यह है कि वित्तीय क्षेत्र विशेष रूप से बैंक जोखिम उठाने से बचें नहीं और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) सहित अन्य क्षेत्रों को ऋण का प्रवाह बढ़ाएं। यदि ऐसा होता है तो मांग पैदा होगी और हम देश में आर्थिक गतिविधियों में सुधार देखेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या रिजर्व बैंक को घाटे का मौद्रिकरण करना चाहिए, कुमार ने कहा कि कि सरकार प्रोत्साहन पैकेज के वित्तपोषण को सभी संभावित विकल्पों पर विचार कर रही है। इस संभावना कि चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं, कुमार ने कहा कि यदि हम कंपनियों को लक्ष्य करने के लिए सही नीतियां लाते हैं, तो मुझे कोई वजह नजर नहीं आती कि ये कंपनियां भारत नहीं आएं।

 

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