पर्लियामेंट्री पैनल ने कहा, ट्रांसजेंडर्स को मिले जेंडर चुनने का अधिकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jul, 2017 04:22 PM

right to choose the gender given to the transenders  parliamentary committee

भाजपा सांसद की अध्यक्षता वाली एक संसदीय समिति ने ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के बीच विवाह एवं तलाक जैसे महत्वपूर्ण मानवाधिकार मामलों का जिक्र नहीं करने को लेकर सरकार के मसौदा ट्रांसजेंडर विधेयक की आलोचना की है।

 नई दिल्ली: भाजपा सांसद की अध्यक्षता वाली एक संसदीय समिति ने ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के बीच विवाह एवं तलाक जैसे महत्वपूर्ण मानवाधिकार मामलों का जिक्र नहीं करने को लेकर सरकार के मसौदा ट्रांसजेंडर विधेयक की आलोचना की है। सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण पर शुक्रवार को लोकसभा में पेश की गई संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर समुदाय पर आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराधीकरण का खतरा बना हुआ है। 

क्या है आईपीसी धारा 377
आईपीसी की यह धारा किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी अप्राकृतिक यौन संपर्क का अपराधीकरण करती है जिसमें समलैंगिंकता भी शामिल है। यह रिपोर्ट एेसे समय में सामने आई है जब भाजपा के नेतृत्व में राजग सरकार पर समलैंगिकता को वैध बनाने का दबाव है। समिति ने कहा कि मसौदा ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) विधेयक 2016 में विवाह एवं तलाक, गोद लेने जैसे अन्य महत्वपूर्ण मानवाधिकार मामलों का जिक्र नहीं किया गया है जो ट्रांसजेंडर लोगों के जीवन के लिए अहम हैं और इनमें से कई लोग सरकार से कोई कानूनी मान्यता नहीं मिले बिना विवाह जैसे संबंधों में हैं। भाजपा नेता एवं लोकसभा सदस्य रमेश बैस ने कहा कि यह विधेयक ट्रांसजेंडर समुदाय को उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत आरक्षण देने को लेकर भी चुप है।

ट्रांसजेंडर्स को मिले जेंडर चुनने का अधिकार
समिति ने सलाह दी कि प्रस्तावित विधेयक में कम से कम ट्रांसजेंडर समुदाय के सहजीवन एवं विवाह के अधिकारों को तो मान्यता देनी चाहिए और सर्जरी या हार्माेन संबंधी बदलाव के बिना भी उन्हें उनका लिंग चुनने का अधिकार होना चाहिए। मसौदा विधेयक में ट्रांसजेंडर को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ट्रांसजेंडर वह है जो न तो पूरी तरह महिला है, न ही पूरी तरह पुरुष है, जो महिला या पुरुष या न तो महिला और न ही पुरुष का मेल है और उसकी लैंगिक भावना उस व्यक्ति के जन्म के समय के लिंग से मेल नहीं खाती है। समिति ने कहा कि मसौदा विधेयक में ट्रांसजेंडर की परिभाषा वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलाव से बिल्कुल विपरीत हैं जहां ट्रांसजेंडरों को स्वनिर्धारण और उस पहचान के आधार पर लाभ प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।  इसमें कहा गया है, यह केवल समता, गरिमा, स्वायत्तता के मौलिक अधिकारों का ही उल्लंघन नहीं है बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत प्रदत्त ट्रांसजेंडर व्यक्ति की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन है।

ट्रांसजेंडरों के बारे में जागरूकता जरूरी
समिति ने यह भी सिफारिश की है कि विधेयक के पहले अध्याय में भेदभाव की परिभाषा को भी शामिल किया जाए जिसमें उन अधिकारों के उल्लंघन का जिक्र होना चाहिए जिनका सामना ट्रांसजेंडर करते हैं। इसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों और समाज से ट्रांसजेंडरों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कदम उठाने की अपील की गई है।  समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि एक एेतिहासिक बदलाव हो रहा है और ट्रांसजेंडर हिंसा एवं भेदभाव को समाप्त करने के उनके संघर्ष में अकेले नहीं हैं। उसने कहा कि ट्रांसजेंडर होना शर्म की बात नहीं है बल्कि शर्म की बात उन लोगों के लिए है जो इस समुदाय के लोगों को नापसंद करते है या उनका विरोध करते हैं।

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