अब स्पेस में सर्जिकल स्ट्राइक- कभी साइकिल पर ले गए थे रॉकेट

Edited By Seema Sharma,Updated: 28 Mar, 2019 08:55 AM

rockets had ever taken on bicycles

21 नवम्बर, 1963 को केरल में तिरुवनंतपुरम के करीब थंबा से पहले रॉकेट के लॉन्च के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू हुआ। यह रोचक बात है कि उस रॉकेट को लॉन्च पैड तक एक साइकिल से ले जाया गया था

 

नई दिल्ली: 21 नवम्बर, 1963 को केरल में तिरुवनंतपुरम के करीब थंबा से पहले रॉकेट के लॉन्च के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू हुआ। यह रोचक बात है कि उस रॉकेट को लॉन्च पैड तक एक साइकिल से ले जाया गया था और उसे एक चर्च से लॉन्च किया गया। नारियल के पेड़ों के बीच स्टेशन का पहला लॉन्च पैड था। एक स्थानीय कैथोलिक चर्च को वैज्ञानिकों के लिए मुख्य दफ्तर में बदला गया। बिशप हाऊस को वर्कशॉप बना दिया गया। मवेशियों के रहने की जगह को प्रयोगशाला बनाया गया जहां अब्दुल कलाम आजाद जैसे युवा वैज्ञानिकों ने काम किया।

ये होंगे फायदे

  • भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को सुरक्षित रख सकेगा
  • अंतरिक्ष में भी दुश्मन को निशाना बना सकेगा।
  • दुश्मन की हर हरकत पर रहेगी नजर
  • अंतरिक्ष में स्थापित अपने सैटेलाइट पर भी रख पाएगा नजर
  • अगर दुश्मन देश की सीमा में ऑर्बिट अटैक की कोशिश करेगा तो भारत उसे मार गिरा सकता है।


चीन को टक्कर देगी यह मिसाइल
चीन के पास इस तकनीक के होने से भारत पर बड़ा दबाव था क्योंकि युद्ध जैसी स्थिति में चीन हमारेक्षेत्रों में सैटेलाइट निगरानी कर सकता था लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर सकेगा। इसी खतरे को देखते हुए भारत ने इस मिसाइल सिस्टम का परीक्षण किया है।

तकनीकी रूप से बैलिस्टिक मिसाइल
उस प्रक्षेपास्त्र को कहते हैं जिसका पथ अर्ध चंद्राकार या सब ऑर्बिटल होता है। इसका उपयोग किसी पूर्व निर्धारित लक्ष्य को नष्ट करने के लिए किया जाता है। इस मिसाइल को केवल पहले चरण में ही गाइड किया जाता है। उसके बाद का पथ कक्षीय यांत्रिकी के सिद्धांतों एवं बैलिस्टिक्स के सिद्धांतों से निर्धारित होता है।

क्या है बैलिस्टिक मिसाइल

  • 2007 में ही हासिल कर ली थी तकनीक पर सरकार ने नहीं दी इजाजत यह 3 स्टेज में करती है काम टेकऑफ के दौरान पहले चरण में रॉकेट मिसाइल को 2 से 3 मिनट तक हवा में धकेलते हैं जिससे मिसाइल अंतरिक्ष में पहुंच जाती है। पहले चरण के रॉकेट के खत्म होने के बाद ये अपने आप मिसाइल से अलग हो जाते हैं।
  • दूसरे चरण में मिसाइल अंतरिक्ष में प्रवेश करती है इस समय मिसाइल की गति 24 हजार से 27 हजार किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है। यह इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि अंतरिक्ष में हवा का कोई प्रतिरोध नहीं होता है।
  • तीसरे चरण में मिसाइल वातावरण में फिर से प्रवेश करती है और मिनटों के भीतर अपने लक्ष्य को हिट करती है। अगर आई.सी.बी.एम. के पास रॉकेट थ्रस्टर्स हैं तो यह उन्हें अपने लक्ष्य की ओर बेहतर तरीके से साध सकता है।


रूस, चीन व अमरीका के पास ही है यह टैक्नोलॉजी
1963 से अमरीका के पास
1967 से रूस के पास
2007 से चीन के पास

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