सबरीमाला मंदिर मामला: महिलाओं की एंट्री के फैसले के खिलाफ SC में पुनर्विचार याचिका

Edited By Anil dev,Updated: 08 Oct, 2018 02:17 PM

sabarimala temple ayyappa temple association supreme court

केरल के सबरीमाला स्थित अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने वाले फैसले के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई है। द नेशनल अयप्पा डिवोटी (वीमेन्स) एसोसिएशन ने पुनर्विचार याचिका दायर करके उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया है.....

नई दिल्ली: केरल के सबरीमाला स्थित अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने वाले फैसले के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई है। द नेशनल अयप्पा डिवोटी (वीमेन्स) एसोसिएशन ने पुनर्विचार याचिका दायर करके उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया है कि वह अपने हालिया फैसले की समीक्षा करे। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक संबंधी सदियों पुरानी प्रथा को 4:1 के बहुमत के फैसले में समाप्त कर दिया था और सभी आयुवर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी। अब सबरीमाला मंदिर में महिलाएं भी भगवान अयप्पा के दर्शन कर सकती हैं।  

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पुनरीक्षण याचिका में कहा गया है कि संविधान पीठ के फैसले से संविधान की प्रस्तावना में प्रदत्त विचारधारा, अभिव्यक्ति, मान्यता, आस्था एवं पूजा के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।  सबरीमाला मंदिर में हर साल नवंबर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, शेष पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज्यादा भक्त पहुंचते हैं।  यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़यिों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

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क्या है  मामला
आपको बतां दे कि सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगी पाबंदी को हटाते हुए कहा था कि अब हर उम्र की महिलाएं मंदिर में दर्शनों के लिए जा सकेंगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा था कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकना लैंगिक भेदभाव है और यह हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ अपने फैसलों में सीजेआई दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर के फैसले से सहमत हुए लेकिन जस्टिस इन्दु मल्होत्रा ने बहुमत से अलग अपना फैसला पढ़ा।


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