Edited By Seema Sharma,Updated: 14 Nov, 2019 02:06 PM
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दे गुरुवार को नए सिरे से विचार के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिए। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली...
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दे गुरुवार को नए सिरे से विचार के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिए। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इन धार्मिक मुद्दों को नए सिरे से विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ को सौंपे जाने पर एकमत थी। हालाकि, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने बहुमत के फैसले में सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी अपने निर्णय पर पुनर्विचार की याचिकाओं को लंबित रखने का निश्चय किया।
संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में शीर्ष अदालत के 28 सितंबर, 2018 के फैसले पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की और न ही पहले के फैसले पर रोक लगाई है। इसी निर्णय में कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी। इस मामले में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ ने अल्पमत का फैसला सुनाते हुए सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं और 28 सितंबर, 2018 के निर्णय पर अमल का निर्देश दिया। सबरीमला मंदिर प्रकरण में संविधान पीठ ने बहुमत का निर्णय 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित 65 याचिकाओं पर सुनाया।
कोर्ट के 28 सितंबर के फैसले का केरल में हिंसक विरोध होने के बाद ये याचिकाएं दायर की गई थीं। शीर्ष अदालत ने 28 सितंबर, 2018 को 4:1 के बहुमत से फैसला देते हुए, सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक की व्यवस्था को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था। न्यायालय ने इस व्यवस्था को पक्षपातपूर्ण और महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर अन्याय करार दिया था।