मिसालः कोरोना वायरस के शिकार लोगों के "सगे" बनकर अंतिम विदाई दे रहे हैं सफाईकर्मी

Edited By shukdev,Updated: 03 May, 2020 06:01 PM

safai workers giving final farewell to corona virus victims

कोरोना वायरस संक्रमण के कारण दम तोड़ने वाले लोगों के अंतिम संस्कार में जहां उनके परिजन तक शामिल नहीं हो पा रहे हैं वहीं अस्पतालों के साफ सफाई कर्मी अंतिम रस्मों को पूरा करने में परिजनों की भूमिका अदा कर रहे हैं। कोरोना वायरस संक्रमण से...

इंदौर: कोरोना वायरस संक्रमण के कारण दम तोड़ने वाले लोगों के अंतिम संस्कार में जहां उनके परिजन तक शामिल नहीं हो पा रहे हैं वहीं अस्पतालों के साफ सफाई कर्मी अंतिम रस्मों को पूरा करने में परिजनों की भूमिका अदा कर रहे हैं। कोरोना वायरस संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित इंदौर में कई मामलों में तो ऐसा भी हुआ कि अस्पताल के सफाई कर्मियों ने ही शव को मुखाग्नि तक दी।

कोविड-19 से बचाव के नियम-कायदों के चलते इस महामारी के मृतकों की अंतिम यात्रा में उनके परिवार के चंद लोगों को ही हिस्सा लेने की अनुमति दी जा रही है। इस मुश्किल घड़ी में निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) से लैस सफाई कर्मियों को अंतिम संस्कार स्थलों में मृतकों के शोक में डूबे परिजनों की मदद करते देखा जा सकता है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक रेड जोन में शामिल इंदौर जिले में अब तक कोविड-19 के 1,568 मरीज मिल चुके हैं जिनमें से 76 लोगों की इलाज के दौरान मौत हो चुकी है।

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अरबिंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (सैम्स) के मुर्दाघर के सफाई कर्मियों के चार सदस्यीय दल के प्रमुख सोहनलाल खाटवा (50) ने रविवार को बताया, "कोरोना वायरस से कोई हिंदू मरा हो या मुसलमान अथवा किसी अन्य धर्म का व्यक्ति, हम उसे अंतिम विदाई देने में उसके परिजनों की मदद कर रहे हैं। इन लोगों से भले ही हमारा खून का रिश्ता न हो। लेकिन यह इंसानियत का मामला है।" उन्होंने बताया, "अक्सर ऐसे भी मौके आए हैं, जब संक्रमण को लेकर परिजनों के डर के कारण हमने इस महामारी से मरे लोगों की चिता को खुद आग दी है। हमारे साथ ऐसा कब्रिस्तान में भी कई बार हुआ है, जब हमने मृतक के किसी नजदीकी रिश्तेदार की तरह उसके शव को सुपुर्दे-खाक किया है।" खाटवा ने बताया कि सावधानी के तौर पर परिजनों को अंतिम संस्कार के वक्त शवों से दूर खड़े रहना पड़ता है। अंतिम संस्कार की रस्मों को संक्षिप्त तरीके से पूरी कर परिजन तत्काल वहां से रवाना हो जाते हैं। उन्होंने गहरी सांस लेकर कहा, "हम इन लोगों की मजबूरी समझते हैं।" 

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खाटवा ने कहा,"हमारे भी बाल-बच्चे हैं और थोड़ा डर तो हमें भी जाहिर तौर पर लगता है। लेकिन अब हमें कोरोना वायरस से मरे लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल होने की आदत हो गई है।" खाटवा, भगवान महाकाल (नजदीकी धार्मिक नगरी उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग) के अनन्य भक्त हैं और उनके वॉट्सऐप खाते के परिचय में भी "जय श्री महाकाल" लिखा नजर आता है। उन्होंने कहा, "हम महाकाल से रोज यही प्रार्थना करते हैं कि दुनिया भर में कोरोना वायरस का प्रकोप जल्द खत्म हो।" 

उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण से मरे व्यक्ति के शव पर मुर्दाघर में पंप की मदद से विशेष रसायनों का दूर से छिड़काव किया जाता है ताकि इस बेजान जिस्म के प्रबंधन और अंतिम संस्कार में शामिल लोग संक्रमण के खतरे से बचे रहें। इसके बाद शव पर प्लास्टिक की पन्नी और कपड़े की दो-दो परतें चढ़ायी जाती हैं। फिर इसे विशेष बैग में बंद कर दिया जाता है। उन्होंने बताया, "अंतिम संस्कार स्थल पर शव को ले जाए जाने से पहले हम मृतक के सगे-संबंधियों को उसका चेहरा दूर से दिखाकर उसकी पहचान करा देते हैं। इस तरह वे शव के अंतिम दर्शन भी कर लेते हैं।" 

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इस बीच, उन लोगों के लिए भी यह वक्त गहरे भावनात्मक आघात वाला है जो कोरोना वायरस के शिकार सगे-संबंधियों और नजदीकी लोगों को अंतिम विदाई तक नहीं दे पा रहे हैं। पिछले महीने इस महामारी से इंदौर के 62 वर्षीय डॉक्टर की मौत के बाद एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था। इसमें दिवंगत डॉक्टर के ऑस्ट्रेलिया में मौजूद तीन बेटे अपने पिता की पार्थिव देह का वीडियो कॉल के जरिये अंतिम दर्शन करने के दौरान विलाप करते नजर आए थे।

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