संविधान को मानता है संघ, उसका कोई एजेंडा नहीं : भागवत

Edited By shukdev,Updated: 19 Jan, 2020 05:36 PM

sangh accepts constitution has no agenda bhagwat

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि संघ भारत के संविधान को मानता है। उसका कोई एजेंडा नहीं है और वह शक्ति का कोई दूसरा केन्द्र नहीं चाहता। संघ प्रमुख ने रुहेलखंड विश्वविद्यालय में ‘भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का...

बरेली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि संघ भारत के संविधान को मानता है। उसका कोई एजेंडा नहीं है और वह शक्ति का कोई दूसरा केन्द्र नहीं चाहता। संघ प्रमुख ने रुहेलखंड विश्वविद्यालय में ‘भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' विषय पर अपने व्याख्यान में संविधान से लेकर हिन्दुत्व तक कई मुद्दों पर खुल कर बात की। उन्होंने कहा कि संघ को लेकर तमाम भ्रांतियां फैलाई जाती हैं और वे तभी दूर हो सकती हैं, जब संघ को नजदीक से समझा जाए। उन्होंने कहा कि संघ के पास कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है और ना ही वह किसी को अपने हिसाब से चलाता है। 

भागवत ने कहा कि संघ का कोई एजेंडा नहीं है, वह भारत के संविधान को मानता है। उन्होंने कहा कि हम शक्ति का कोई दूसरा केंद्र नहीं चाहते, संविधान के अलावा कोई शक्ति केंद्र होगा, तो हम उसका विरोध करेंगे। दो ही बच्चे पैदा करने की नीति को लेकर शुक्रवार को मुरादाबाद में दिए गए अपने बयान को स्पष्ट करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ लोग भ्रमवश कह रहे हैं कि संघ देश के परिवारों को दो बच्चों तक सीमित करने की इच्छा रखता है। उन्होंने कहा कि हमारा कहना है कि सरकार को इस बारे में विचार करके एक नीति बनानी चाहिए। संघ प्रमुख ने कहा,'सबका मन बनाकर नीति बनाई जानी चाहिए।' 

भागवत ने कहा कि जब हम कहते हैं कि इस देश के 130 करोड़ लोग हिंदू हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी के धर्म, भाषा या जाति को बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम संविधान से अलग कोई सत्ता केंद्र नहीं चाहते हैं, क्योंकि हम इस पर विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कि जाति, पंथ, संप्रदाय, प्रांत और तमाम विविधताओं के बावजूद हम सभी को मिलकर भारत निर्माण करना है। संघ प्रमुख ने भारत की गुलामी का जिक्र करते हुए कहा, “मुट्ठी भर लोग आते हैं और हमें गुलाम बनाते हैं, हमारी कमियों की वजह से ऐसा होता है। हम जब-जब हिन्‍दू भाव भूले हैं, तब-तब विपत्ति आई है।” 

भागवत ने अन्य धर्मावलम्बियों की तरफ इशारा करते हुए कहा,'हम राम-कृष्ण को नहीं मानते, कोई बात नहीं, लेकिन इन सब विविधताओं के बावजूद हम सब हिन्‍दू हैं। जिनके पूर्वज हिन्‍दू थे, वे अब भी हिन्‍दू हैं। हम अपनी संस्कृति से एक हैं। हम अपने भूतकाल में भी एक हैं। यहां 130 करोड़ लोग हिन्‍दू हैं, क्‍योंकि आप भारत माता की संतान हैं।”

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