Edited By Yaspal,Updated: 30 Sep, 2022 10:13 PM
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आरोप लगाया गया था कि नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का डिज़ाइन भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित प्रयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 का उल्लंघन करता है
नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें आरोप लगाया गया था कि नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का डिज़ाइन भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित प्रयोग का निषेध) अधिनियम, 2005 का उल्लंघन करता है। न्यायालय इस दलील से भी सहमत नहीं था कि वहां के शेर अधिक आक्रामक प्रतीत होते हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि धारणा किसी व्यक्ति के दिमाग पर निर्भर करती है। यह याचिका न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।
पीठ के मुताबिक, यह नहीं कहा जा सकता है कि वहां स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक से 2005 के अधिनियम का उल्लंघन होता है। वकीलों अल्दानिश रीन और रमेश कुमार मिश्रा द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया था कि राष्ट्रीय प्रतीक में दिख रहे शेर "क्रूर और आक्रामक" प्रतीत होते हैं। याचिका में दावा किया गया था कि राज्य प्रतीक के डिजाइन में बदलाव स्पष्ट रूप से मनमाना है। विपक्षी सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने सरकार पर अशोक के सिंहों की मुद्रा बदलने और उन्हें आक्रामक दिखाने तथा राष्ट्रीय प्रतीक को विकृत करने का आरोप लगाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को नए संसद भवन की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया था और वहां एक धार्मिक कार्यक्रम में भी भाग लिया था।
शेर उग्र नज़र आ रहे हैं
दोनों वकीलों ने यह भी कहा था कि संसद भवन की छत पर लगाए गए प्रतीक में शेर उग्र नज़र आ रहे हैं। उनके मुंह खुले हैं, जिसमें नुकीले दांत दिख रहे हैं। इसमें देवनागरी लिपि में 'सत्यमेव जयते' भी नहीं लिखा, जो कि राष्ट्रीय प्रतीक का अनिवार्य हिस्सा है। राजचिन्ह में इस तरह का बदलाव गलत है।
जस्टिस एम. आर. शाह और कृष्ण मुरारी की बेंच याचिकाकर्ता की बातों से सहमत नहीं हुए। उन्होंने कहा कि अगर शेर किसी को आक्रामक मुद्रा में लग रहा है, तो वह उसकी अपनी सोच हो सकती है। जो चिन्ह संसद भवन में लगाया गया है, वह स्टेट एंबलम ऑफ इंडिया एक्ट के अनुसार सही है।