प्रमोशन में आरक्षण: SC अपने फैसले पर अटल, जानिए SC/ST कर्मचारियों पर पड़ेगा क्या असर

Edited By Seema Sharma,Updated: 26 Sep, 2018 12:16 PM

supreme court upheld 2006 judgment on reservation issue in promotion

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2006 में दिए अपने फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि आरक्षण के मामले में 12 साल पुराने ‘नागराज’

नई दिल्लीः अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2006 में दिए अपने फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि आरक्षण के मामले में 12 साल पुराने ‘नागराज’ फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है। हालांकि कोर्ट ने यह जरूर कह दिया कि राज्य सरकारें चाहें तो वे अपने SC/ST सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। कोर्ट के इस फैसले को बाद अब जरूर नहीं होगा कि सरकार SC/ST सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे लेकिन यह राज्यों का अपना खुद का फैसला होगा। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ.नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया। 
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  1. पदोन्नति में आरक्षण के लिए एससी/एसटी से संबंधित संख्यात्मक आंकड़ा इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है।
  2. कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें चाहे तो वे प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। 
  3. एम. नागराज बनाम भारत सरकार मामले में 2006 के पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले को सात-सदस्यीय पीठ के हवाले करने से इंकार कर दिया जिसमें एससी/एसटी को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं।
  4. 2006 में कोर्ट के फैसले के बाद 12 साल बाद भी न तो केंद्र और न राज्य सरकारों ने कर्मचारियों के आंकड़े दिए। हालांकि कई राज्य सरकारों ने प्रमोशन में आरक्षण के कानून पास किए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते यह कानून रद्द होते गए।
  5. कोर्ट ने 2006 के अपने फैसले में तय की गई उन दो शर्तों पर टिप्पणी नहीं की जो तरक्की में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासनिक दक्षता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित नहीं करने से जुड़े थे।
  6. केंद्र ने कोर्ट में तर्क दिया था कि एससी/एसटी पहले से ही पिछड़े हैं, इसलिए प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए अलग से किसी डेटा की जरूरत नहीं है।
  7. अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि जब एक बार कर्मचारियों को एससी/एसटी के आधार पर नौकरी मिल चुकी है तो पदोन्नति में आरक्षण के लिए फिर से डेटा की क्या जरूरत है?

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उल्लेखनीय है कि 2006 में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य एससी/एसटी के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक आंकड़ा देने के लिए बाध्य हैं। कोर्ट ने कहा था कि इन समुदायों के कर्मचारियों को पदोन्नत में आरक्षण देने से पहले राज्य सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं प्रशासनिक कार्यकुशलता के बारे में तथ्य पेश करेंगे।

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