Edited By Seema Sharma,Updated: 17 Jul, 2019 11:23 AM
कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस- जद(एस) गठबंधन के 10 बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को आदेश दिया कि वे जल्द उनके इस्तीफे पर विचार करें।
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निर्देश दिए कि कांग्रेस और जद(एस) के 15 अंसतुष्ट विधायकों को कर्नाटक विधानसभा की कार्रवाई में भाग लेने के लिए बाध्य न किया जाए। कर्नाटक विधानसभा में 18 जुलाई को एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा लाए जाने वाले विश्वास मत पर फैसला होना है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार अपने द्वारा तय की गई अवधि के भीतर असंतुष्ट विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि अध्यक्ष का फैसला उसके समक्ष पेश किया जाए।
कोर्ट की कार्रवाई पर एक नजर
- स्पीकर को खुली छूट है कि वह नियमों के हिसाब से फैसला करें, फिर चाहे वो इस्तीफे पर हो या फिर अयोग्यता पर हो।
- सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि बागी विधायकों पर विधानसभा में जाने को लेकर कोई दबाव नहीं है।
- सीजेआई ने कहा कि हमारा मकसद सिर्फ संवैधानिक संतुलन बनाए रखना है। इस्तीफे पर फैसला लेने के कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष का अधिकार अदालत के निर्देश या फैसले से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अंसतुष्ट विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर जो भी फैसला लेंगे वो कोर्ट के सामने पेश किया जाए।
कर्नाटक से कांग्रेस के पांच बागी विधायकों ने 13 जुलाई को शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष उनके त्यागपत्र स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इन विधायकों में आनंद सिंह, के सुधाकर, एन नागराज, मुनिरत्न और रोशन बेग शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार को कांग्रेस और जद (एस) के बागी विधायकों के इस्तीफे और उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिका पर 16 जुलाई तक कोई भी निर्णय लेने से रोक दिया था। इन दस बागी विधायकों में प्रताप गौडा पाटिल, रमेश जारकिहोली, बी बसवाराज, बी सी पाटिल, एस टी सोमशेखर, ए शिवराम हब्बर, महेश कुमाथल्ली, के गोपालैया, ए एच विश्वनाथ और नारायण गौडा शामिल हैं। इन विधायकों के इस्तीफे की वजह से कर्नाटक में एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के सामने विधानसभा में बहुमत गंवाने का संकट पैदा हो गया था।