कश्मीर में धारा 144 हटाने को लेकर याचिका दायर, SC ने कहा- बचा कर रखिए अपनी ऊर्जा

Edited By vasudha,Updated: 08 Aug, 2019 02:41 PM

sc refuses to hear early plea challenging article 370

उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले, संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली तथा राज्य में पाबंदियां लगाये जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई से इंकार कर...

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले, संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली तथा राज्य में पाबंदियां लगाये जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिकाओं को सुनवाई के लिये शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया गया। पीठ ने ऐसा करने से इंकार करते हुये कहा कि ये सामान्य प्रक्रिया में सूचीबद्ध होंगी। 
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व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने अपने मामले का उल्लेख करते हुये पीठ से इसे 12 या 13 अगस्त को सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। दूसरी ओर, पूनावाला की ओर से अधिवक्ता सुहेल मलिक ने कहा कि वह अनुच्छेद 370 पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं लेकिन चाहते हैं कि राज्य से ‘कर्फ्यू और पाबंदियां' तथा इंटरनेट, समाचार चैनलों और फोन लाइनों को अवरूद्ध करने सहित उठाए गए सख्त कदम वापस लिये जायें। पीठ ने शर्मा से सवाल किया कि क्या उन्होंने याचिका में बताई गयी खामियों को दूर कर दिया है। इस पर शर्मा ने कहा कि उन्होंने आपत्तियों को दूर कर दिया है और रजिस्ट्री ने उनकी याचिका को नंबर दे दिया है। 

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शर्मा ने याचिका शीघ्र सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुये कहा कि पाकिस्तान सरकार और कुछ कश्मीरी लोगों ने कहा है कि वे अनुच्छेद 370 पर राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में जायेंगे। इस पर पीठ ने सवाल किया कि यदि वे संयुक्त राष्ट्र जायेंगे तो क्या संयुक्त राष्ट्र भारत के संविधान संशोधन पर रोक लगा सकता है ? पीठ ने शर्मा से कहा कि आप अपनी ऊर्जा इस मामले में बहस के लिये बचा कर रखें। याचिका में दावा किया गया कि राष्ट्रपति का आदेश गैरकानूनी है क्योंकि इसे जम्मू कश्मीर विधानसभा की सहमति के बगैर ही पारित किया गया है। पूनावाला के वकील ने कहा कि राज्य की जनता अपने परिवार के सदस्यों से संपर्क स्थापित करना चाहती है और उन्हें वहां की मौजूदा स्थिति में अपने परिजनों की कुशलक्षेम जानने का अधिकार है। 
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याचिका में पूनावाला ने नजरबंद पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। इसके साथ उन्होंने राज्य की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिये न्यायिक आयोग गठित करने का भी अनुरोध किया है। कांग्रेस कार्यकर्ता की याचिका में कहा गया है कि सरकार द्वारा लिये गये फैसले से संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन होता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि केन्द्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने का फैसला लिये जाने के बाद से राज्य में राजनीतिक दलों के अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है और राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने संविधान के अनुच्छेद 370 के उन प्रावधानों को समाप्त घोषित कर दिया था जिनसे जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा मिला था। भाजपा शासित सरकार ने जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने और इस सीमावर्ती राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभक्त करने के लिये मंगलवार को संसद से मंजूरी प्राप्त की थी। इसके बाद, राष्ट्रपति ने इस पर अपनी मुहर लगायी थी। 

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