पराली से होने वाले प्रदूषण से मिलेगी निजात, वैज्ञानिकों ने ढूंढी नई तरकीब

Edited By Seema Sharma,Updated: 11 Oct, 2018 02:35 PM

scientists change parali to hybrid composites

मौसम के करवट बदलते ही राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है। दिल्ली की खराब हवा का एक कारण किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली भी है। दरअसल फसल काटने के बाद खेत में बची पराली को किसान जला देते हैं

नई दिल्ली: मौसम के करवट बदलते ही राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है। दिल्ली की खराब हवा का एक कारण किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली भी है। दरअसल फसल काटने के बाद खेत में बची पराली को किसान जला देते हैं जिसके कारण हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। पिछले तीन साल से राजधानी दिल्ली की हवा काफी खरीब हुई है। पिछले साल तो दिल्लीवासियों को सांस तक लेने में परेशानी का सामना करना पड़ा। किसानों और वातावरण के लिए समस्या का कारण बनी पराली को अब वैज्ञानिक एक अलग ढंग से प्रयोग में लाएंगे। भारतीय वैज्ञानिकों ने इससे हाइब्रिड कंपोजिट तैयार करने की तकनीक ढूंढ़ ली है जिसका इस्तेमाल घरों की छतें, दीवारें, फर्श आदि बनाने के लिए किया जा सकता है।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की प्रयोगशाला ‘एडवांस्ड मटेरियल्स एंड प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट’(एम्प्री) के वैज्ञानिक डॉ. अशोकन पप्पू ने पराली समेत अनेक प्रकार के कूड़े को हाइब्रिड कंपोजिट में बदलने की तकनीक विकसित की है। उन्होंने बताया कि पराली से बनी शीट सागवान की लकड़ी की तुलना में चार गुणा मजबूत, उससे हल्की और 30 प्रतिशत सस्ती है। यह आग से पूरी तरह सुरक्षित है। यह मौसम, नमी और फंगस से सुरक्षित है। उन्होंने सीमेंट उद्योग से निकलने वाले‘ फ्लाई ऐस’ में फाइबर मिलाकर एक दूसरा हाइब्रिड कंपोजिट तैयार किया है जो सागवान की लकड़ी से 10 गुणा मजबूत और 40 प्रतिशत सस्ता है।

संगमरमर उद्योग से निकलने वाले छोटे-छोटे टुकड़ों के हाइब्रिड कंपोजिट से पेपरवेट तैयार किए गए हैं जिनकी कीमत मजह 25 से 30 रुपए है। खास बात यह है कि यह पेपरवेट गिरने के बावजूद टूटता नहीं।  डॉ. पप्पू ने बताया कि वह 15 वर्ष से इस तकनीक पर काम कर रहे थे तथा उत्पाद और उत्पादन प्रक्रिया दोनों का भारत तथा अमेरिका में पेटेंट कराया जा चुका है। करीब डेढ़ साल पहले छत्तीसगढ़ की कंपनी इको ब्राइट शीट को यह तकनीक हस्तांतरित की गई थी। इन उत्पादों की मांग इतनी है कि कंपनी अपनी पूरी क्षमता पर उत्पादन करते हुए भी मांग पूरी नहीं कर पा रही है। उसने महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ में अपने संयंत्र लगाए हैं जबकि एक संयंत्र पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार ने लगाया है।  इन पदार्थों से इस्तेमाल छह फीट गुणा आठ फीट आकार तक के शीट, फर्श और दीवारों के टाइल्स, छत की शीट, दरवाजे तथा पार्टिशन पैनल तैयार करने में किए जा सकते हैं। इनके उत्पादन की प्रक्रिया काफी सरल है तथा इसमें ऊर्जा की खपत भी कम होती है। ये पूरी तरह किफायती हैं और इनमें रखरखाव का झंझट नहीं होता।

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