अलविदा धारा-377 : समलैंगिकों की कानूनी लड़ाई का अब तक का घटनाक्रम

Edited By Seema Sharma,Updated: 07 Sep, 2018 09:29 AM

section 377 know the point to point

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एकमत से दी गई अपनी व्यवस्था में कहा कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं। न्यायालय ने कहा कि इससे जुड़ा ब्रिटिश काल का कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता था।

नेशनल डैस्कः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एकमत से दी गई अपनी व्यवस्था में कहा कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं। न्यायालय ने कहा कि इससे जुड़ा ब्रिटिश काल का कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता था। इस फैसले के साथ ही एलजीबीटीक्यू कार्यकर्त्ताओं के बीच जश्न शुरू हो गया जो इस फैसले का अधिक समावेशी भारत की तरफ बढ़े कदम के तौर पर स्वागत कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि ऐसे यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान से संविधान में प्रदत्त समता और गरिमा के अधिकार का हनन होता है।
PunjabKesari
शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किए जाने वाला है। शीर्ष न्यायालय के इस फैसले से भारत दुनिया का ऐसा 126वां (रिपीट) (126वां) देश बन गया है जहां समलैंगिकता को कानूनी मान्यता है। बता दें कि बगरी अधिनियम, 1533 हेनरी एट. के शासन के दौरान इंगलैंड की पार्लियामैंट ने पास किया। यह सोडोमी या पुरुष मैथुन के खिलाफ  इंग्लैंड का पहला कानून था। इसी को आधार बनाते हुए ब्रिटिश भारत ने धारा- 377 पेश की थी। बगरी अधिनियम का यह खंड 1838 में थॉमस मैकॉले द्वारा तैयार किया गया था और इसे 1860 में लागू किया गया था।
PunjabKesari
समलैंगिकों की कानूनी लड़ाई का घटनाक्रम

  • 1999: भारत में पहली बार समलैंगिकों ने कोलकाता में परेड का आयोजन किया।
     
  • 2001:समलैंगिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली एन.जी.ओ. नाज फाऊंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की।
     
  • सितम्बर-नवम्बर 2004: हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, समलैंगिक अधिकार कार्यकर्त्ताओं ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका भी खारिज की।
     
  • दिसम्बर 2004: समलैंगिक अधिकार कार्यकत्र्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
     
  • अप्रैल 2006: सुप्रीम कोर्ट ने मामला वापस दिल्ली हाईकोर्ट के पास भेजा और गुण-दोष के आधार पर मामले पर पुनर्विचार करने को कहा।
     
  • 2 जुलाई 2009: उच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दी।
     
  • 11 दिसम्बर 2013: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया।
     
  • 20 दिसम्बर 2013: केन्द्र ने फैसले की दोबारा जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।
     
  • 28 जनवरी 2014: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले की समीक्षा से इन्कार किया। केन्द्र और कार्यकत्र्ताओं की याचिका खारिज की।
     
  •  2 फरवरी 2016: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर सुधारात्मक याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजा।
     
  •  24 अगस्त 2017: सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया।
     
  • 11 जुलाई 2018: केन्द्र ने धारा 377 की वैधता पर कोई भी निर्णय सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ा।  
        
  • 17 जुलाई 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया।
     
  • 6 सितम्बर 2018: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दी।
    PunjabKesari

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!