Edited By Anil dev,Updated: 27 Sep, 2018 04:37 PM
सुप्रीम कोर्ट के एडलटरी यानि व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने ट्वीट कर तीन तलाक पर लाए गए...
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के एडलटरी यानि व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने ट्वीट कर तीन तलाक पर लाए गए अध्यादेश को वापस लेने की मांग की है। असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक नहीं कहा है जबकि उच्चतम न्यायालय ने 377 और 497 को असंवैधानिक करार दिया। क्या मोदी सरकार इन फैसलों से सीखेगी और तीन तलाक पर अपने असंवैधानिक अध्यादेश को वापस लेगी?
ओवैसी ने आगे कहा, क्या इंसाफ है मित्रों आपका, अब बीजेपी क्या करेगी। तीन तलाक के मसले पर ओवैसी ने कहा कि तीन तलाक को अपराध मानना गलत है क्योंकि इस्लाम में निकाह एक करार है। हमारा समाज पितृसत्तात्मक है, जब पति जेल में होगा तो फिर महिलाओं की मदद कौन करेगा। पति के जेल में होने पर पत्नी उसका इंतजार क्यों करे। ओवैसी ने आगे कहा कि ट्रिपल तालक अध्यादेश को न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिए क्योंकि यह धोखाधड़ी है। अध्यादेश के पहले पृष्ठ में, सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक कहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी कोई बात नहीं कही। कोर्ट ने कभी इसे अवैध नहीं ठहराया बल्कि उसने बस इसे अलग कर दिया।
ओवैसी ने कहा कि तीन तलाक अध्यादेश पूरी तरह मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ है। यहां तक कि ओवैसी ने मोदी सरकार के इस फैसले को समानता के मूलभूत अधिकार के खिलाफ बताया। ओवैसी ने कहा कि इस्लाम में शादी एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट है और उसमें आपराधिक कानून लागू करना बिल्कुल गलत है। ओवैसी ने मांग करते हुए कहा कि सरकार तीन तलाक कानून का आपराधिकरण करने के बजाय उन 24 लाख शादीशुदा महिलाओं के लिए कानून लाए, जिन्हें बिना तलाक दिए उनके पति छोड़ चुके हैं। बता दें कि हमारे देश में महिलाओं का एक बड़ा आंकड़ा ऐसा भी है जिनके पति बिना तलाक दिए छोड़कर अलग हैं और ऐसे मामलों पर कानून मूक है।
एडलटरी यानि व्यभिचार पर कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आज यानि गुरुवार को अपने फैसले में व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से मनमाना है और महिला की वैयक्तिकता को ठेस पहुंचाता है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया।