बजट 2020- इस बार मनरेगा पर हो सकती है, वित्त मंत्री सीता रमण की विशेष "नजर"

Edited By Ashish panwar,Updated: 12 Jan, 2020 11:21 PM

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन इस बार ग्रामीण भारत के लिए, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना पर विशेष दरियादिली दिखा सकती हैं। गांव के बेरोजगारों को रोजगार की गारंटी देने वाली इस योजना के लिए आवंटित राशि में इस बार न सिर्फ अच्छी खासी वृद्धि होगी बल्कि...

नई दिल्लीः वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन इस बार ग्रामीण भारत के लिए, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना पर विशेष दरियादिली दिखा सकती हैं। गांव के बेरोजगारों को रोजगार की गारंटी देने वाली इस योजना के लिए आवंटित राशि में इस बार न सिर्फ अच्छी खासी वृद्धि होगी बल्कि इसको ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए कई अहम सुधारों का भी ऐलान किया जा सकता है। बजट बनाने की प्रक्रिया में जो चर्चा हुई है उसमें यह माना गया है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये बिना, विकास की गति को और अधिक तेज नहीं किया जा सकता है। मनरेगा को ग्रामीण क्षेत्रों में काम की क्षमता को बढ़ाने में एक मजबूत हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है।

 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत चलने वाली इस योजना का आवंटन विगत वर्षो में बढ़ा है, फिर भी लोगों की आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार सामने नहीं आ पाया है। इस बारे में टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस (टिस) के प्रोफेसर अश्विनी कुमार ने बताया है कि, मनरेगा का आवंटन बढ़ने के बावजूद ग्रामीणों का पलायन नहीं रुक पा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण, निर्माण के पक्के काम तो बढ़े हैं, लेकिन मजदूरी का हिस्सा कम हुआ है। 

 

प्रोफेसर अश्विनी ने आगे बताया कि, पहले इस योजना में सामग्री और मजदूरी का अनुपात 60 और 40 होता था, जिसकी गणना जिला स्तर पर होती थी। लेकिन धीरे-धीरे उसे ग्रामीण स्तर पर लागू कर दिया गया है। इससे मनरेगा में यह अनुपात अब उल्टा हो गया है, जिससे मजदूरी पर कम और सामग्री पर ज्यादा खर्च होने लगा है। इसके विपरीत तमिलनाडु व केरल की सरकारें राज्य में 100 फीसद खर्च सिर्फ मजदूरी पर ही कर रही हैं। लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में यह बिल्कुल उलट है। पलायन का यह भी मुख्य कारण माना जाता है।

 

मनरेगा में दैनिक मजदूरी कम होने के कारण पलायन को मजबूर है, देहाड़ी मजदूर 

यूपी और बिहार सहित लगभग एक दर्जन राज्यों में मनरेगा की मजदूरी महज 160 से 175 रुपये रोजाना है। जबकि कश्मीर में सेब तोड़ने वाले और पंजाब में खेती करने वाले मजदूरों को 500 से 700 रुपये रोजाना मिलते है। वहीं, केरल व तमिलनाडु तो इसमें और भी एक कदम आगे है, जहां पर मजदूरी 700 से 800 रुपये तक मिलती है। ऐसे हालात में मजदूर गांव में क्यों रुकेगा। 

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