Edited By Pardeep,Updated: 04 Apr, 2021 06:35 AM
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार पिछले कुछ समय से अपने राजनीतिक जीवन में बड़ी दुविधा का सामना कर रहे हैं। हालांकि वह ही महाराष्ट्र सरकार को रिमोट कंट्रोल से चला रहे हैं परंतु वह इससे संतुष्ट नहीं हैं। महाराष्ट्र में कहने
नई दिल्लीः राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार पिछले कुछ समय से अपने राजनीतिक जीवन में बड़ी दुविधा का सामना कर रहे हैं। हालांकि वह ही महाराष्ट्र सरकार को रिमोट कंट्रोल से चला रहे हैं परंतु वह इससे संतुष्ट नहीं हैं। महाराष्ट्र में कहने को तो 3 दलों शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार है परंतु सरकार में सबसे अधिक किसी की चलती है तो वह हैं शरद पवार।
पूरे महाराष्ट्र में उनका हुक्म चलता है। पवार इसलिए असंतुष्ट हैं क्योंकि वह राष्ट्रीय राजनीति में भी प्रमुख भूमिका निभाने की इच्छा रखते हैं। यह तभी संभव है जब कांग्रेस उन्हें विपक्ष का नेतृत्व करने वाला नेता मान ले या कांग्रेस को छोड़कर एक विचार वाले अन्य विपक्षी दल उन्हें अपना नेता स्वीकार कर लें। इन पार्टियों में तृणमूल कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी, वाई.एस.आर. कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बीजू जनता दल, शिवसेना, अकाली दल, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आदि शामिल हैं।
वैसे वामदल पवार के नेतृत्व के लिए राजी नहीं होंगे तथा यह सारी बात पश्चिम बंगाल चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगी। पवार के सामने एक अन्य समस्या भी है। वह चाहते हैं कि उनकी राजनीतिक विरासत उनकी पुत्री महाराष्ट्र से सांसद सुप्रिया सुले को मिले। उनकी यह इच्छा उनके भतीजे अजीत पवार, जो दशकों से राज्य में जमीन पर काम कर रहे हैं, से उनका टकराव करा सकती है।
सप्रिया सुले के लिए अजीत पवार के गढ़ में पैठ बनाना कठिन काम होगा। महाराष्ट्र में पार्टी काडर अजीत पवार को राज्य जबकि सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय राजनीति के लिए उपयुक्त मानता है। जब तक शरद पवार मौजूद हैं, राकांपा का पूरा काडर पूरी मजबूती से उनके पीछे खड़ा है परंतु यह सुखद स्थिति सुप्रिया सुले के साथ नहीं।
दूसरी ओर, कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) के खासा कमजोर हो जाने के बावजूद सोनिया गांधी यू.पी.ए. का अध्यक्ष पद छोडऩे के मूड में नहीं हैं। तो ऐसे में क्या पवार विपक्ष में रहते हुए अपना लक्ष्य पा सकेंगे? कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता। पवार की समस्या यह है कि अगर वह भाजपा से हाथ मिलाते हैं तो उनकी पुत्री महाराष्ट्र में उनकी उत्तराधिकारी नहीं रह पाएगी। यही शरद पवार की दुविधा है।