1971 जंग: 47 साल से अपने फाइटर पायलट पति के इंतजार में हैं दमयंती, बोलीं-सब इतना आसान नहीं होता

Edited By Seema Sharma,Updated: 12 Mar, 2019 11:00 AM

she wait 47 years for her fighter pilot husband

भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान तीन दिन पाकिस्तान की हिरासत में रहकर सकुशल भारत लौट आए, इसे उनकी किस्मत और भारत सरकार की कूटनीति ही कहा जाएगा कि दुश्मन की कैद से उनकी इतनी जल्दी वतन वापसी हुई।

नई दिल्लीः भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान तीन दिन पाकिस्तान की हिरासत में रहकर सकुशल भारत लौट आए, इसे उनकी किस्मत और भारत सरकार की कूटनीति ही कहा जाएगा कि दुश्मन की कैद से उनकी इतनी जल्दी वतन वापसी हुई। लेकिन हर सैनिक और पायलट की किस्मत अभिनंदन जैसी नहीं होती। दिल्ली की दमयंती को आज भी अपने पति के लौटने की आस है। दमयंती का कहना है कि जितनी हमें लगती हैं कई बार चीजें उतनी सरल नहीं होती हैं। हाल ही में मीडिया से बात करते हुए उनके अंदर दबे पुराने जख्म एक बार फिर ताजा हो गए। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने रेडियो ऑन किया तो खबर मिली कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट विजय वसंत तांबे को सीमा के उस पार बंदी बना लिया गया था। फ्लाइट लेफ्टिनेंट विजय वसंत तांबे की पत्नी दमयंती के लिए यह खबर एक पहाड़ के जैसी थी। दमयंती बताती हैं कि 5 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था और अब 47 साल हो गए हैं, विजय वसंत का नाम उन 54 लापता डिफेंस पर्सनल में शामिल है जो पाकिस्तान से भारत नहीं लौट सके। दिल्ली के मुनिरका में स्थित एक फ्लैट में रह रहीं दमयंती के मुताबिक शुरुआत में उन्हें लगा कि युद्ध के बाद सब सुलझ जाएगा और उनके पति वापिस लौट आएंगे लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, समझ आया कि जो जितना आसान दिखता है उतना होता नहीं है। उन्होंने कहा कि हमने बहुत कोशिश की, सरकार के दरवाजे पर चक्कर भी बड़े लगाए लेकिन हम उन पर कितना दवाब डाल सकते थे।
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इंतजार लंबा हो गया
बैंडमिंटन में तीन बार नैशनल चैंपियन रह चुकी दमयंती की शादी 1970 में विजय तांबे से हुई। उन्होंने 2004 में एक इंटरव्यू में बताया था कि 3 दिसंबर, 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ चुका था। युद्ध के दो दिन बाद उनके पास एक सरकारी टेलिग्राम आया जिसमें विजय को बंदी बनाए जाने की सूचना थी। दमयंती ने कहा कि तब मैंने राहत की सांस ली कि विजय खतरे से बाहर है और युद्ध के बंदी के रूप में जल्द ही उनकी घर वापसी हो जाएगी लेकिन यह तो इंतजार की एक शुरुआत भर थी।
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जब खबर आई जिंदा है विजय
विजय के युद्ध बंदी के बाद ससुराल वालों ने हौसला दिया और ससुर की सलाह के 1972 को अर्जुन अवॉर्ड मिलने के बाद एक स्पोर्ट्स ऑफिसर के रूप में नौकरी शुरू की। इस दौरान दमयंती कई अधिकारियों से मिली ताकि पति की रिहाई की बात कर सकें लेकिन कोई मदद नहीं मिली। 1975 में खबर आई की विजय जिंदा है तो फिर एक किरण दिखी उनकी रिहाई की। दमयंती बताती हैं कि ढाका से छपने वाले एक अखाबर में 5 भारतीय पायलट के जिंदा होने की खबर थी। इसमें तांबे का नाम भी शुमार था। इसके बाद 1979 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री समरेंद्र कुंडू ने संसद में बताया कि 40 भारतीय रक्षाकर्मी पाकिस्तानी जेल में हैं। इसके बाद यह संख्या आगे 54 हो गई। 1983 में दोनों देशों की सरकारों में डील हुईं कि कैदी के संबंधियों का एक समूह सीमा पार यात्रा करके अपने लोगों की पहचान कर सकता है। दमयंती बताती हैं कि उनमें से एक नाम मेरा भी था लेकिन मुल्तान जेल में पहचान के लिए जाने से एक दिन पहले ही यह डील अचानक से टाल दी गई।
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पाकिस्तान ने बंदी कैदियों से मिलने नहीं दिया
दमयंती बताती हैं कि जून 2007 में युद्धबंदी के संबंधियों का एक 15 सदस्यीय डेलिगेशन को आखिरकार पाकिस्तान की कुछ जेलों में जाने की अनुमति दी गई लेकिन पड़ोसी मुल्क ने लाहौर की कोट लखपत जेल को छोड़कर किसी भी कैदी को हमें नहीं दिखाया। कराची, रावलपिंडी, सुक्कुर, फैसलाबाद और दूसरे शहरों के जेलरों ने सिर्फ कैदियों के रिकॉर्ड ही दिखाए, जो उर्दू में लिखे थे। यह सफर सिर्फ समय खराब करने वाला साबित हुआ और हम सब पाकिस्तान से निराश होकर लौटे।

पति बन गए इतिहास, पर इंतजार आज भी
2013 में दमयंती फिजिकल एजुकेशन के डेप्युटी डायरेक्टर पद से रिटायर हुईं और फिलहाल वे वॉर विडो असोसिएशन की जनरल सेक्रेटरी हैं। दमयंती बताती हैं कि इतने लंबे दौर के दौरान मेरे परिवार और मित्रों ने मुझे काफी सपोर्ट किया। दमयंती कहती हैं कि विजय के बिना मैंने जीना तो सीख लिया है और बले ही वे भारत में एक इतिहास बन गए हों लेकिन उनका इंतजार मुझे आज भी है।

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