Edited By ,Updated: 08 Apr, 2016 12:13 PM
लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव और निकाय चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए शिवराज सिंह ने मैहर में मिली जीत से एक बार फिर से साबित कर दिया कि वे अपनी विश्वसनीयता को वापस हासिल करने में कामयाब रहे हैं। उधर मैहर में हार के बाद कांग्रेस...
मध्य प्रदेश: लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव और निकाय चुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए शिवराज सिंह ने मैहर में मिली जीत से एक बार फिर से साबित कर दिया कि वे अपनी विश्वसनीयता को वापस हासिल करने में कामयाब रहे हैं। उधर मैहर में हार के बाद कांग्रेस एक बार फिर अपने पुराने गुटबाजी में फंसती हुई दिखाई पड़ रही है ।
ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने अपनी गलतियों से कोई सीख न लेकर उसे लगातार दोहराने की आदत सी बना ली है। अगर दस साल बीत जाने के बावजूद वह अभी तक खुद को जनता के सामने भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करने में नाकाम रही है, तो इसके पीछे शिवराजसिंह चौहान और भाजपा नहीं, बल्कि खुद कांग्रेस के नेता हैं। वह लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे प्रदेश की कुल 29 सीटों में से मात्र दो सीटें ही मिलीं थीं।
इसका कारण यह है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस नहीं बल्कि इसके नेताओं के गुट ही काम करते हुए दिखाई देते हैं, हर चुनाव में यह गुट भाजपा से ज्यादा एक दुसरे के खिलाफ संघर्ष करते हुए ही नजर आते हैं। पिछले 12 सालों से मध्य प्रदेश की राजनीति में भाजपा कांग्रेस को एक प्रभावविहीन विपक्ष के रूप में बनाए हुए थी, लेकिन पिछले दिनों कुछ समय के लिए इस स्थिति में बदलाव देखने को मिला और दस सालों में पहली बार शिवराजसिंह चौहान कमजोर नजर आए थे।
लेकिन मैहर में हार के बाद प्रदेश कांग्रेस एक बार फिर पुराने ढ़र्रे पर वापस जाती हुई दिखाई पड़ रही है, उसके कारण एक बार फिर आपस में उलझते हुए हैं और पार्टी में गुटबाजी चरम पर पहुंचती दिखाई दे रही है।