शिवसेना का BJP से सवाल- कंगना की तरह हाथरस पीड़िता के परिजनों को क्यों नहीं मिली Y+ सिक्योरिटी?

Edited By vasudha,Updated: 06 Oct, 2020 04:53 PM

shivsena attack on bjp again

शिवसेना ने पूछा कि जब केंद्र सरकार मुंबई की एक अभिनेत्री को ‘वाई-प्लस'' सुरक्षा दे सकती है तो हाथरस की दलित पीड़िता के परिवार को क्यों सुरक्षा नहीं मुहैया कराई जा सकती है। यह रवैया डॉक्टर बी आर आंबेडकर के संविधान में सबके साथ समान व्यवहार के...

नेशनल डेस्क: शिवसेना ने पूछा कि जब केंद्र सरकार मुंबई की एक अभिनेत्री को ‘वाई-प्लस' सुरक्षा दे सकती है तो हाथरस की दलित पीड़िता के परिवार को क्यों सुरक्षा नहीं मुहैया कराई जा सकती है। यह रवैया डॉक्टर बी आर आंबेडकर के संविधान में सबके साथ समान व्यवहार के सिद्धांत से मेल नहीं खाता है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना' में कहा गया है कि हाथरस पीड़िता के परिवार को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, वे डर में जी रहे हैं। कथित सामूहिक दुष्कर्म के बाद पीड़िता की मौत हो गई थी। 

 

सामना में पूछा गया है कि अगर पीड़ित परिवार के लिए वाई-प्लस श्रेणी की सुरक्षा मांगी गई है तो इसमें गलत क्या है। पिछले महीने अभिनेत्री कंगना रनौत को वाई-प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी, क्योंकि एक विवाद के बाद उन्होंने कहा था कि उन्हें मुंबई पुलिस से डर लगता है। सामना में कहा गया कि केंद्र सरकार ने मुंबई की एक अभिनेत्री को वाई-प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी, लेकिन हाथरस सामूहिक-दुष्कर्म की पीड़िता के परिवार को कोई सुरक्षा नहीं मिली। यह समान न्याय के सिद्धांत से मेल नहीं खाता है। यह डॉक्टर आंबेडकर के संविधान के तहत न्याय नहीं है।

 

सामना में कहा गया कि हाथरस कांड ने आडंबर रचने वाले कई लोगों के चेहरे से नकाब हटा दिया। उत्तर प्रदेश सरकार की सीबीआई जांच की सिफारिश पर भी सवाल खड़े होते हैं क्योंकि पीड़िता के परिवार ने इस संबंध में न्यायिक जांच की मांग की है। हाथरस मामले में सीबीआई जांच पर आश्चर्य जताते हुए संपादकीय में आरोप लगाया गया कि उप्र सरकार ने पीड़िता का अंतिम संस्कार करके ‘सबूतों को नष्ट' कर दिया है। 

 

सामना में आरोप लगाया गया कि क्या हाथरस की पुलिस ने ऊपर से बिना पूछे ही ऐसा कर दिया? यह सब सहमति से किया गया है। सामना में कहा गया कि जिन लोगों ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में महाराष्ट्र को ‘बदनाम' करने की कोशिश की, वह हाथरस प्रकरण की वजह से खुद ही अपने खोदे गए गड्ढे में गिर गए हैं। मराठी भाषा में प्रकाशित अखबार के संपादकीय में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश मंत्री परिषद के सभी मंत्रियों को हाथरस पीड़िता के परिवार से मिलना चाहिए। संपादकीय में कहा गया है कि अगर सरकार चीजों को छुपाने में नहीं लगती तो स्थिति इतनी खराब नहीं होती और अब बोलने का क्या फायदा है? 
 

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