आखिर क्यों उद्धव को वापस बाला साहब की राह पर लौटना पड़ा, जानें दिलचस्प वजह

Edited By Anil dev,Updated: 24 Nov, 2018 01:48 PM

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे शनिवार को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अयोध्या में भारी संख्या में भीड़ इकठ्ठा करके विशाल रैली करने की तैयारी कर ली है ।

नई दिल्ली (अमरदीप शर्मा): शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे शनिवार को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अयोध्या में भारी संख्या में भीड़ इकठ्ठा करके विशाल रैली करने की तैयारी कर ली है। इसी बीच, शिवसेना पर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। राजनैतिक गलियारों में इस बात का भी जिक्र हो रहा है कि शिवसेना उत्तर प्रदेश में राजनैतिक जमीन खोजती हुई नजर आ रही है। हालांकि, कहीं न कहीं इसमें गौर करने वाली बात जरूर है। 

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बीजेपी और शिवसेना के बीच थीं काफी नजदीकियां
एक वक्त था जब महाराष्ट्र की राजनीति के सरताज, हिंदू हृदय सम्राट और लोकप्रिय जन नेता बाला साहब ठाकरे का दौर शायद ही किसी के जेहन से निकल पाए। उन्होंने राज्य में हिंदुत्व की छवि बनाकर पूरे राज्य में अपना डंका बजाया था। उस वक्त बीजेपी और शिवसेना के बीच काफी नजदीकियां थीं। साल 1992 में जब बाबरी विध्वंस हुआ था, तब शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने खुद कहा था कि इसमें हमारा सबसे बड़ा योगदान था। 

 

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हिंदुत्व की छवि
दरअसल, शिवसेना महाराष्ट्र में काफी मजबूत पार्टी मानी जाती थी। शिव सैनिक खुले में कहते थे कि हम हिंदूवादी आदमी हैं। हालांकि, यह सब तब तक देखा गया, जब कमान बाला साहब के हाथों में रही। इसके बाद तो ऐसा लग रहा था कि मानो पार्टी ने अपना एजेंडा ही बदल दिया हो। दरअसल, बाला साहब के स्वर्गवास के बाद उद्धव ठाकरे को पार्टी की कमान सौंप दी गई। हालांकि, कभी भी ऐसा नहीं देखा गया कि पुत्र पिता की विरासत को चलाने के लिए उनके नक्शे कदम पर चलते दिखाई दिए।


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यूपी में सियासी तैयारी
राजनीति के गलियारों में उद्धव के अयोध्या कूच को लेकर कई तरह ही बयानबाजियों का बाजार गर्म है। तमाम लोगों का कहना है कि शिवसेना बीजेपी से राम मंदिर का मुद्दा छीन कर खुद को हिंदूवादी और राम भक्त साबित करने पर तुली हुई है। इसके अलावा, दूसरी बात यह भी है कि शिवसेना राम मंदिर के बहाने यूपी की सियासत में एंट्री भी मारने की कोशिश कर रही है। 


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पिता की राह पर उद्धव
इस बात में कोई शक नहीं हैं कि राम मंदिर पर सियासत करने वाली पार्टियां खुद को राम भक्त और हिंदुवादी सरकार कहने से कभी नहीं चूकती हैं। हालांकि, शिवसेना की बात की जाए तो हिंदुत्व उसका नया एजेंडा नही हैं। पार्टी की शुरुआत से ही वह हिंदूवादी संगठन के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही थी। हालांकि, उद्धव के बाद पार्टी का चेहरा बदला हुआ नजर आया। इसके चलते बीजेपी ने महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर नई दिशा की तरफ राजनीति को मोड़ दिया। इसके बाद उद्धव वापस पिता के नक्शे कदम पर वापस आना चाहते हैं। 

इन सब के बीच एक बात साफ है कि ये जो दुकानें सजाई जा रही हैं, उन पर सिर्फ वोटों का ही व्यापार होने वाला है। चाहे मुद्दा राम मंदिर का हो या फिर उद्धव के हिंदुत्व की छवि बनाने का प्रयास करने का। इन सब बातों के पीछे सवाल यही उठता है कि आखिर चुनावी मौसम आते ही हवाओं में राम नाम की गूंज क्यों सुनाई पड़ने लगती है। इसके साथ सवाल यह भी उठता है कि इतने लोगों को एक साथ इकठ्ठा करके क्या एक बार फिर 1992 को दोहराने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है। 

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