श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा: जानिए सिक्खों के इस पवित्र तीर्थस्थल का महत्व

Edited By vasudha,Updated: 27 May, 2018 08:21 PM

shree hemkund sahib yatra open

सिक्खों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तपस्थली रही श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा शुरू हो चुकी है। इसे सिक्ख तीर्थों की सबसे कठिन तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है...

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): सिक्खों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तपस्थली रही श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा शुरू हो चुकी है। इसे सिक्ख तीर्थों की सबसे कठिन तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है। करीब 15 हज़ार 500 फ़ीट ऊंचे ग्लेशियर  पर स्थित श्री हेमकुंड साहिब चारों तरफ से ग्लेशियर (हिमनदों) से घिरे हैं। इन्हीं हिमनदों का बर्फीला पानी जिस जलकुंड का निर्माण करता है उसे ही हेम कुंड यानी बर्फ का कुंड कहते हैं।
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मान्यता है कि यहां श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बरसों तक महाकाल की आराधना की थी। यही वजह है कि  सिक्ख समुदाय की इस तीर्थ में अगाध श्रद्धा है और वे तमाम दिक्क्तों के बावजूद यहां पहुंचते हैं। इस बार पहला दर्शन शुक्रवार 25 तारीख को हुआ जिसके बाद श्रद्धालुओं का सैलाब यहां उमड़ रहा है। पंजाब केसरी टीवी ने अपने दर्शकों के लिए इस बार ख़ास तौर पर श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा की।  
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श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा का पहला पड़ाव ऋषिकेश है। यात्री यहां गुरुद्वारा साहिब में रात्रि विश्राम कर यहीं से मूल यात्रा शुरू करते हैं। यहां श्री हेमकुंड साहिब ट्रस्ट द्वारा यात्रियों की सुविधा के तमाम इंतज़ाम किये गए हैं। यात्रा का अगला पड़ाव गोबिंद घाट है जो ऋषिकेश से करीब तीन सौ किलोमीटर है। इसी रास्ते में सबसे पहले देव प्रयाग पड़ता है। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी नदियां मिलकर गंगा जी का निर्माण करती हैं। बाद में कर्ण  प्रयाग,रूद्र प्रयाग और फिर जोशीमठ और विष्णु प्रयाग होते हुए यात्रा गोबिंद घाट पहुंचती है। रास्ते में सभी मुख्य स्थानों पर गुरुघरों और उसके अलावा संस्थाओं द्वारा भी लंगर और ठहराव की व्यवस्था की गयी है। यानी श्रद्धालुओं के लिए बिना कुछ खर्च किये सभी तरह का खान-पान उपलब्ध रहता है। 
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गोबिंदघाट में दूसरे रात्रि विश्राम के बाद तीर्थ यात्रा का अगला चरण शुरू होता है। यहां से श्री हेमकुंड साहिब की दूरी 19 किलोमीटर है। इसे पैदल या घोड़ों पर तय किया जा सकता है। अंतिम तीन किलोमीटर जो ग्लेशियर वाला हिस्सा है वह सिर्फ पैदल ही तय करना होता है। सक्षम यात्री इसे एक ही दिन में तय कर लेते है तो कुछ सुविधानुसार 13 किलोमीटर दूर गोबिंद धाम में जाते या आते समय रात्रि विश्राम करते हैं। गोबिंद घाट से गोबिंद धाम के बीच हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है। गोबिंद धाम से आगे चार किलोमीटर पैदल या घोड़े से पहुंचा जा सकता है। उसके बाद ग्लेशियर वाला हिस्सा पैदल ही तय करना होता है। 
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जैसे ही ग्लेशियर की चोटी पर पहुंचेंगे सामने हेमकुंड और गुरुद्वारा साहिब का विहंगम दृश्य सारी थकान हर लेता है। श्री हेमकुंड ट्रस्ट के अथक प्रयासों से निर्मित और संचलित सुंदर दरबार के जब श्रद्धालुओं को दर्शन होते हैं तो हर कोई आत्मविभोर हो जाता है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की पवित्र गुरुबाणीका गायन पूरे माहौल में रूहानियत भर देता है। हेमकुंड के बर्फीले पानी में स्नान के बाद दर्शन पाकर सब खुद को धन्य मानते हैं।  
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श्री हेमकुंड ट्रस्ट ने इस ऊंचाई पर तमाम दिक्क्तें झेल कर जो प्रबंध संगत के लिए किये हैं वे सराहनीय हैं। दर्शन के बाद सबको खिचड़ी का लंगर परोसा जाता है और पंजीरी का ख़ास प्रसाद दिया जाता है। समुद्र तल से अत्यधिक ऊंचाई के कारण ट्रस्ट यहां किसी को रात रुकने की इज़ाज़त नहीं देता, ताकि किसी अप्रिय स्थिति से बचा जा सके। सभी को दोपहर दो बजे गोबिंद धाम वापस भेज दिया  जाता है। ट्रस्ट यह भी अपील  करता है कि संगत किसी किस्म का कचरा अवशेष यहां छोड़कर न जाएँ ताकि स्थान की पवित्रता बनी रहे।
 

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