चुनाव का साइड इफैक्ट: खतरे में भाजपा का मिशन 2019

Edited By Seema Sharma,Updated: 12 Dec, 2018 10:26 AM

side effect of election bjp s 2019 mission in danger

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि मोदी और भाजपा की लहर खत्म होने जा रही है और वहीं भाजपा का मिशन 2019 भी खतरे में पड़ गया है।

जालंधर(बहल/सोमनाथ): 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि मोदी और भाजपा की लहर खत्म होने जा रही है और वहीं भाजपा का मिशन 2019 भी खतरे में पड़ गया है। भाजपा शासित 3 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पटखनी देकर जीत हासिल कर ली है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा पिछले 15 सालों से सत्तारूढ़ है। निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और रमन सिंह को उम्मीद थी कि वह चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे मगर उनका सपना ध्वस्त होकर रह गया, वहीं राजस्थान में हर 5 साल बाद सत्ता परिवर्तन का सिलसिला जारी रहा। मिजोरम में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, जबकि तेलंगाना में टी.आर.एस. ने समय से पहले चुनाव कराकर दोबारा भारी बहुमत के साथ सरकार संभाल ली है।
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भाजपा की हार के मायने और असर
नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी के लिए यह हार वाटरलू साबित हो सकती है। 2019 के चुनावों से कुछ माह पहले हुई यह हार उनके दोबारा प्रधानमंत्री बनने के सपने को तोड़ सकती है। इस हार से सबसे ज्यादा नुक्सान मोदी को ही हुआ है। क्योंकि यह मिथ्य टूट गया है कि मोदी चुनाव नहीं हार सकते। इस हार का सीधा प्रभाव आने वाले दिनों में मोदी की छवि पर भी पड़ेगा। विपक्ष के हमले तेज होंगे। राफेल, नीरव मोदी को लेकर सवाल भी उठेंगे। 
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भाजपा के अपने सहयोगी जद (यू) और शिवसेना के हमले भी भाजपा को सहने होंगे। शिवसेना ने तो चुनाव परिणाम आते ही साफ कर दिया है कि अब मोदी लहर नहीं है। आने वाले दिनों में भाजपा को शिवसेना की शर्तों पर समझौता करना पड़ सकता है।
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हालांकि शिवसेना पहले ही कह चुकी है कि वह अपने दम पर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ेगी लेकिन महाराष्ट्र का भी किला न ढह जाए इसलिए भाजपा शिवसेना के आगे घुटने टेक सकती है। क्योंकि रकांपा पहले ही कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुकी है। शरद पवार कांग्रेस के लिए विपक्ष को एकजुट करने में लगे हुए हैं इसलिए प्रधानमंत्री के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी और अब यह साफ दिख रहा है कि भाजपा का मिशन 2019 खतरे में है।
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अमित शाह
अमित शाह के लिए यह हार उनकी सबसे बड़ी हार साबित हो सकती है। हालांकि बिहार के विधानसभा चुनाव में अमित शाह की हार हुई थी लेकिन 3 राज्यों की हार ने यह साबित कर दिया है कि हर बार शाह का दाव सीधा नहीं पड़ सकता। पिछले कुछ महीनों से शाह ने इन तीनों राज्यों की कमान अपने हाथ ले रखी थी। बूथ लैवल पर पन्ना प्रमुखों की मीटिंगों से लेकर राज्य स्तर के नेताओं से वह खुद बात कर रहे थे लेकिन उनका हर दाव उलटा पड़ा। छत्तीसगढ़ में शाह ने जोड़-तोड़ की राजनीति करने के लिए कांग्रेस के अंदर बागी तक खड़े किए थे। इसी तरह राजस्थान में भी यह दाव खेला। उन्हें यह ट्रिक पंजाब में अपने सहयोगी अकाली दल से मिली थी। अकाली दल ने 2012 के चुनाव में कांग्रेस को इसी ट्रिक से हराया था। राजनीतिक माहिरों का कहना है कि कांग्रेस को इस ट्रिक का आभास हो गया था। इसलिए कांग्रेस ने भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को उसी की ट्रिक से मारा।
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चुनाव परिणाम से यह बात भी सामने आई कि राजस्थान में भाजपा को अपने ही बागियों के कारण भारी नुक्सान हुआ है। भाजपा को छोड़ अलग पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी ने भी पार्टी का काफी नुक्सान किया। ऐसा भी कहा जा रहा है कि भाजपा हाईकमान ने तिवाड़ी को मनाने की कोशिश नहीं की। उन्हें हल्के से लिया गया। इस तरह राजस्थान में शाह का दाव सीधा नहीं पड़ा। मध्य प्रदेश में शाह शिवराज चौहान और दूसरे बड़े नेताओं कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल, सुमित्रा महाजन के बीच तालमेल नहीं बिठा पाए। मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रही उमा भारती भी चुनाव से दूर रहीं जिसका नुक्सान भाजपा को उठाना पड़ा।
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वसुंधरा राजे सिंधिया
सिंधिया के लिए यह चुनावी हार उनका राजनीतिक करियर समाप्त कर सकती है। मोदी और शाह के साथ उनका टकराव जगजाहिर है। वसुंधरा के दबाव के कारण शाह अपनी मर्जी के नेता को राज्य भाजपा अध्यक्ष नहीं बना पाए थे। सिंधिया ने हमेशा हाईकमान के फैसले को अपनी वीटो पावर का प्रयोग करके बदला है। अब इस हार के बाद सिंधिया की वीटो पावर खत्म हो गई है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में भाजपा हाईकमान राज्य नेतृत्व में भारी बदलाव कर सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री राजवर्धन सिंह राठौर को सिंधिया के विकल्प के तौर पर तैयार किया जा रहा है। भाजपा हाईकमान को पहले ही यह आभास था कि राजस्थान में बड़ी हार मिलने वाली है इसलिए पहले से ही राठौर का महत्व पार्टी में बढ़ाना शुरू कर दिया। अब राजस्थान में वसुंधरा की नहीं चलेगी हालांकि हाईकमान विपक्ष का नेता बनने से वसुंधरा को नहीं रोकेगी लेकिन यह तय लग रहा है कि वसुंधरा के पर कतर दिए जाएंगे। 
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शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान ने आखिरी समय पर काफी मेहनत की है। इस कारण भाजपा कांग्रेस को कांटे की टक्कर दे पाई है लेकिन अब ऐसा लगता है कि भाजपा हाईकमान शिवराज सिंह चौहान के विकल्प की तलाश भी शुरू कर देगी। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय का नाम विकल्प के तौर पर लिया जा रहा है। इस बात की भी संभावना है कि आने वाले दिनों में भाजपा हाईकमान राज्य नेतृत्व को बदल कर नई लीडरशिप के नेतृत्व में चुनाव लड़े लेकिन यह हार उतनी बड़ी नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान पर भाजपा कोई रिस्क उठा सके। यह हो सकता है कि शिवराज चौहान को भाजपा केंद्र की राजनीति में ले जाए। ऐसा कहा जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान लोगों की नब्ज पकडऩे में कामयाब रहे हैं मगर उन्हें किसानों की नाराजगी का अहसास नहीं था। इसी तरह से जनरल कैटागरी के वोट भी छिटक जाएंगे इसका आकलन करने में भी वह बुरी तरह असफल रहे। इस हार के बाद भाजपा के नेता यह कह रहे हैं कि शिवराज चौहान और उनका ओवर कॉन्फिडैंस ही ले डूबा।
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रमन सिंह
छत्तीसगढ़ में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। न भाजपा हाईकमान और न ही छत्तीसगढ़ के रमन सिंह को यह अहसास था कि भाजपा को इतनी बड़ी हार मिलेगी। त्रिकोणीय मुकाबला होने के कारण रमन सिंह को योगी से आस थी। उन्हें ऐसा लग रहा था कि योगी और बसपा का गठबंधन उनके काम आ सकेगा और एक बार फिर वह सत्ता में बने रहेंगे लेकिन उनका यह अनुमान उलटा साबित हुआ है। सू्त्रों का कहना है कि रमन सिंह ने भाजपा हाईकमान को यह कह दिया था कि वह उनकी ङ्क्षचता अब न करे, छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी। लेकिन चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार को लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। भाजपा के कुछ नेता दावा कर रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में हाईकमान ने अपने सत्र पर सर्वे करवाया था कि रमन सिंह की राह आसान नहीं है लेकिन रमन सिंह ने इसे यह कहकर इंकार कर दिया था कि यह विरोधियों की शरारत है।
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कई नेताओं के भाग्य का फैसला करेंगे यह चुनाव परिणाम
ये चुनाव परिणाम 2019 में होने वाले आम चुनावों के लिए एक बड़ा संकेत हैं। इन चुनाव परिणामों से बहुत से नेताओं के भाग्य का फैसला भी होगा। इन राज्यों के चुनाव परिणाम राष्ट्रीय पार्टियों के लिए इसलिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं कि ये प्रमुख मुद्दों को भीतर से जानने का अवसर प्रदान करेंगे जिनका संबंध आम लोगों से है लेकिन इसी के साथ ही ये परिणाम प्रमुख नेताओं के लिए एक संदेश भी हैं। साथ ही इस भावना को समझने का भी अवसर मिलेगा कि मतदाताओं द्वारा उन्हें कैसे लिया जा रहा है। 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी भाजपा के सबसे सफल मतदाता विजेता के रूप में उभरे थे, जो पार्टी की जीत संभव कर सकते हैं मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। भाजपा के लिए यह चुनाव अलग तरह का था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के 3 प्रमुख राज्यों में सशक्त स्थानीय चेहरे मैदान में थे और जहां इन चुनावों में मतदाताओं ने राज्य सरकारों और विधायकों की स्थानीय कारगुजारी का फैसला किया है वहीं ये चुनाव परिणाम मोदी के लिए एक संदेश भी हैं।
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राहुल गांधी के लिए निर्णायक साबित हुए चुनाव
ये चुनाव कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए अधिक निर्णायक रहे हैं। एक वर्ष पहले उन्होंने कांग्रेस की बागडोर संभाली थी। उन्होंने गुजरात में जबरदस्त चुनाव अभियान चलाया था मगर सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने कर्नाटक में मेहनत की और भाजपा को सरकार बनाने से रोकने में सफल रहे। वह मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक ही रहे। उन्होंने इसी के साथ शेष विपक्ष के साथ संबंध मजबूत बनाए मगर गांधी पार्टी को मतों के जरिए जीत नहीं दिला सके। कांग्रेस की इन चुनावों में जीत का श्रेय स्थानीय नेताओं विशेषकर राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को जाएगा लेकिन राहुल गांधी इन चुनावों में जननेता के रूप में उभरे हैं। ये चुनाव परिणाम क्षेत्रीय नेताओं के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव चुनावों में जीत से राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभर कर आए हैं। दूसरी तरफ महाखुतामी की जीत से चंद्रबाबू नायडू का कद कम हुआ है।

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