Edited By Yaspal,Updated: 27 Aug, 2020 09:10 PM
जम्मू-कश्मीर स्थित पुलवामा में पिछले साल केंद्रीय अर्धसैनिक बल (CRPF) के काफिले पर हुए हमले की जांच के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को बड़ी सफलता हाथ लगी है। एनआईए की विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल करने के दो दिन के भीतर ही जांच एजेंसी ने आतंकी...
नेशनल डेस्कः जम्मू-कश्मीर स्थित पुलवामा में पिछले साल केंद्रीय अर्धसैनिक बल (CRPF) के काफिले पर हुए हमले की जांच के दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को बड़ी सफलता हाथ लगी है। एनआईए की विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल करने के दो दिन के भीतर ही जांच एजेंसी ने आतंकी उमर फारुख की मदद करने वाली महिला इंशा जान को गिरफ्तार कर लिया है। बता दें कि इस आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो गए थे और कई घायल हुए थे। इंशा जान इस आतंकी हमले में शामिल इकलौती महिला थी और उसकी गिरफ्तारी के बाद उम्मीद है कि जांच और आगे बढ़ेगी।
मालूम हो कि 23 वर्षीय इंशा जान, एक एनकाउंटर में मारे गए उमर फारुक की करीबी साथी थी। वह उससे फोन और सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में रहती थी। एनआईए के मुताबिक इंशा के पिता तारिक पीर को भी दोनों की जान-पहचान के बारे में पता था। पीर ने भी आतंकी उमर फारुक और उसके अन्य सहयोगियों की मदद की थी। पुलवामा और आसपास के इलाकों में उमर की आमदरफ्त के दौरान पीर ने उसकी मदद की।
बता दें इंशा का नाम एनआईए की 5,000 पन्नों की चार्जशीट में भी है जिसमें पूरे हमले की दास्तां और आरोपियों का जिक्र है। एनआईए की चार्जशीट में कहा गया है कि - एनआईए ने कहा, 'आरोपी शाकिर बशीर, इंशा जान, पीर तारिक अहमद शाह और बिलाल अहमद कुचे ने सभी साजो-सामान मुहैया कराए और जेईएम के आतंकवादियों को अपने घरों में पनाह दी।'
एनआईए की चार्जशीट के अनुसार पुलवामा आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए जैश-ए- मोहम्मद (जेईएम) के प्रमुख मसूद अजहर के भतीजे मोहम्मद उमर फारूक के पाकिस्तान के बैंक खाते में दस लाख रुपये भेजे गए थे। पिछले वर्ष फरवरी में हुए हमले में सीआरपीएफ के 40 कर्मी शहीद हो गए थे. यह जानकारी एनआईए ने अपने आरोप पत्र में दी है। एनआईए के आरोप पत्र में कहा गया है, ‘जांच से पता चलता है कि पुलवामा हमला सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र था जिसे पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के नेतृत्व ने रचा था। जेईएम के नेता अपने कैडर को प्रशिक्षण के लिए अफगानिस्तान में अल-कायदा- तालिबान- जेईएम और हक्कानी-जेईएम शिविरों में भेजते रहे हैं।