Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Feb, 2018 03:14 PM
आज रात 12 बजकर 25 मिनट पर लगेगा 2018 का पहला सूर्यग्रहण। इसका प्रभाव 16 फरवरी प्रात: चार बजे तक रहेगा। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले आरंभ हो जाता है। यह ग्रहण रात में पड़ रहा है इसलिए भारतीय उपमाद्वीप में इसे देखा नहीं जा सकेगा। यह खंडग्रास सूर्य ग्रहण...
आज रात 12 बजकर 25 मिनट पर लगेगा 2018 का पहला सूर्यग्रहण। इसका प्रभाव 16 फरवरी प्रात: चार बजे तक रहेगा। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले आरंभ हो जाता है। यह ग्रहण रात में पड़ रहा है इसलिए भारतीय उपमाद्वीप में इसे देखा नहीं जा सकेगा। यह खंडग्रास सूर्य ग्रहण दक्षिण अमरीका, प्रशांत महासागर, चिली, पैसिफिक महासागर, ब्राजील, दक्षिण जार्जिया, ध्रुवप्रदेश अंटार्कटिका आदि देशों में दिखाई देगा।
इस सूर्य ग्रहण का नजारा नासा की वेबसाइट पर लाइव देखा जा सकेगा। भारतीय आज रात घर बैठे नासा की लाइव स्ट्रीमिंग का आनंद ले सकेंगे।
पहले सूर्य ग्रहण के बाद दूसरा सूर्य ग्रहण: 13 जुलाई आंशिक सूर्य ग्रहण ऑस्ट्रेलिया में दिखेगा।
तीसरा सूर्य ग्रहण: 11 अगस्त आंशिक सूर्य ग्रहण पूर्वी यूरोप, एशिया, नोर्थ अमेरिका और आर्कटिक में दिखेंगे।
मानव जाती के लिए ग्रहण से अशुभता का संचार होता है। जिस नक्षत्र और राशि पर ग्रहण की अशुभता का प्रभाव होता है। उन पर नकारात्मकता हावी रहती है। शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन से अमृत-कुंभ निकलते ही धन्वन्तरि के हाथ से कलश छीनकर दैत्य भागे क्योंकि उनमें से प्रत्येक सबसे पहले अमृतपान करना चाहता था।
कलश के लिए छीना-झपटी चल रही थी और देवता निराश खड़े थे। अचानक वहां एक अद्वितीय सौंदर्यशालिनी नारी प्रकट हुई। असुरों ने उसके सौंदर्य से प्रभावित होकर उससे मध्यस्थ बनकर अमृत बांटने की प्रार्थना की। वास्तव में भगवान ने ही दैत्यों को मोहित करने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था।
मोहिनी रूप धारी भगवान ने कहा, ‘‘मैं जैसे भी विभाजन का कार्य करूं,चाहे वह उचित हो या अनुचित,तुम लोग बीच में बाधा न उपस्थित करने का वचन दो, तभी मैं इस कार्य को करूंगी।’’
सभी ने इस शर्त को स्वीकार किया। देवता और दैत्य अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। जिस समय भगवान मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे राहू धैर्य न रख सका। वह देवताओं का रूप धारण करके सूर्य-चंद्रमा के बीच में बैठ गया जैसे ही उसे अमृत का घूंट मिला, सूर्य चंद्रमा ने संकेत कर दिया। भगवान मोहिनी रूप का त्याग करके शंकर-चक्रधारी विष्णु हो गए और उन्होंने चक्र से राहू का मस्तक काट डाला।
अमृत के प्रभाव से वह अमर हो चुका था उसका सिर राहु और धड़ केतु रूप में सौर मंडल में स्थापित हो गए। कहते हैं राहु और केतु का तभी से सूर्य और चंद्रमा से वैर है।वह ग्रहण के रूप में दोनों को शापित करते हैं।