जल्द बदल सकती है लड़कियों की शादी की उम्र, सरकार ने शुरू किया काम

Edited By Yaspal,Updated: 19 Feb, 2020 10:57 PM

soon girls can change their marriage age government starts work

केंद्र सरकार ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि लड़कियों की मां बनने की न्यूनतम आयु के विषय का अध्ययन करने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। पुरुषों और महिलाओं की शादी की कानूनी उम्र में समानता की मांग करने वाली एक जनहित याचिका

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि लड़कियों की मां बनने की न्यूनतम आयु के विषय का अध्ययन करने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। पुरुषों और महिलाओं की शादी की कानूनी उम्र में समानता की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से ये जानकारी दी गयी। चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ को संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हालिया बजट भाषण के बारे में बताया गया जिसमें उन्होंने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु पर भी चर्चा की थी।

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा था, ‘‘महिलाओं की शादी की उम्र 1978 में 15 साल से बढ़ा कर 18 की गयी थी जिसके लिए 1929 के शारदा कानून में संशोधन किया गया। भारत जितनी तरक्की करेगा, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और करियर के अवसर खुलेंगे।'' उन्होंने कहा, ‘‘मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) कम करना और पोषण स्तर में सुधार करना अत्यंत अनिवार्य है। किसी लड़की की मां बनने की आयु के पूरे विषय को इस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। मैं एक कार्यबल के गठन का प्रस्ताव रखती हूं जो छह महीने के समय में अपनी सिफारिशें देगा।'' अदालत ने याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र को और समय दिया।

याचिका में कहा गया है कि महिलाओं की शादी की न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष ‘अत्यंत भेदभावपूर्ण' है। अदालत ने आगे सुनवाई के लिए 28 मई की तारीख तय की। भारत में पुरुषों की विवाह के लिए न्यूनतम कानूनी उम्र 21 साल है। याचिकाकर्ता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि एक कानूनी प्रश्न उठाते हुए याचिका दाखिल की गयी है और कार्यबल का गठन करने से मकसद का हल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार से संबंधित है।

हाईकोर्ट ने पहले भाजपा नेता उपाध्याय की जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था। याचिका में दावा किया गया था कि पुरुषों और महिलाओं की विवाह की न्यूनतम आयु का अंतर पितृसत्तात्मक दुराग्रह पर आधारित है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। याचिका में दावा किया गया कि शादी की आयु में अंतर लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और महिलाओं की गरिमा के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

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