बाल यौन शोषण के मुकदमों के लिए बनें विशेष अदालतें

Edited By Pardeep,Updated: 26 Jul, 2019 04:50 AM

special courts for child sexual abuse lawsuits

उच्चतम न्यायालय ने सभी जिलों में बाल यौन शोषण के मुकदमों के लिए केंद्र से वित्त पोषित विशेष अदालतें गठित करने का वीरवार को आदेश दिया। ये अदालतें उन जिलों में गठित की जाएंगी जहां यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण कानून (पोक्सो) के तहत एक सौ या इससे...

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सभी जिलों में बाल यौन शोषण के मुकदमों के लिए केंद्र से वित्त पोषित विशेष अदालतें गठित करने का वीरवार को आदेश दिया। ये अदालतें उन जिलों में गठित की जाएंगी जहां यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण कानून (पोक्सो) के तहत एक सौ या इससे अधिक मुकदमे लंबित हैं। 
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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि पोक्सो के तहत मुकदमों की सुनवाई के लिए इन अदालतों का गठन 60 दिन के भीतर किया जाए। इन अदालतों में सिर्फ पोक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की ही सुनवाई होगी। पीठ ने कहा कि केंद्र पोक्सो कानून से संबंधित मामलों को देखने के लिए अभियोजकों और सहायक कार्मिको को संवेदनशील बनाए तथा उन्हें प्रशिक्षित करे। 
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न्यायालय ने राज्यों के मुख्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि ऐसे सभी मामलों में समय से फॉरेन्सिक रिपोर्ट पेश की जाए। पीठ ने केंद्र को इस आदेश पर अमल की प्रगति के बारे में 30 दिन के भीतर रिपोर्ट पेश करने और पोक्सो अदालतों के गठन और अभियोजकों की नियुक्ति के लिए धन उपलध कराने को कहा। देश में बच्चों के साथ हो रही यौन हिंसा की घटनाओं में तेजी से वृद्धि पर स्वतं: संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने इस प्रकरण को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था।
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न्यायालय ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता वी. गिरि को न्याय मित्र नियुक्त करने के साथ ही शुरू में ऐसे मामलों का विवरण भी तलब किया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि बच्चों के बलात्कार के मामलों के और अधिक राष्ट्रव्यापी आंकड़े एकत्र करने से पोक्सो कानून के अमल में विलंब होगा।  न्यायालय इस मामले में अब 26 सितंबर को आगे सुनवाई करेगा। 

बाल यौन अपराध के मामले निपटाने में बाधाएं

  • आधारभूत संरचना व मानवशक्ति के लिए धन की कमी
  • अधीनस्थ अदालतों में बुनियादी ढांचे की कमी व खाली पड़े पद
  • प्रयोगशालाओं की कमी से एफएसएल रिपोर्ट में देरी
  • प्राथमिकी जल्द दर्ज न होना और  केस की धीमी प्रक्रिया

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