आजादी के बाद से नैशनल कांफ्रैंस का गढ़ रहा श्रीनगर-बडग़ाम संसदीय क्षेत्र

Edited By Monika Jamwal,Updated: 26 Mar, 2019 01:05 PM

srinagar is always a hot seat for abdullahs

जम्मू-कश्मीर की सियासत में सबसे प्रभावशाली अब्दुल्ला परिवार ने श्रीनगर-बडग़ाम संसदीय क्षेत्र को लॉन्चिंग पैड की तरह इस्तेमाल किया, क्योंकि शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की धर्मपत्नी बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला से लेकर उनके पुत्र डा. फारूक अब्दुल्ला एवं पौत्र...

जम्मू (बलराम सैनी): जम्मू-कश्मीर की सियासत में सबसे प्रभावशाली अब्दुल्ला परिवार ने श्रीनगर-बडग़ाम संसदीय क्षेत्र को लॉन्चिंग पैड की तरह इस्तेमाल किया, क्योंकि शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की धर्मपत्नी बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला से लेकर उनके पुत्र डा. फारूक अब्दुल्ला एवं पौत्र उमर अब्दुल्ला ने इसी क्षेत्र से अपनी संसदीय पारी शुरू की। इसमें कोई संदेह नहीं कि आजादी के बाद से श्रीनगर-बडग़ाम संसदीय क्षेत्र हमेशा नैशनल कांफ्रैंस का गढ़ बना रहा। निवर्तमान लोकसभा में उपचुनाव जीतकर डा. फारूक अब्दुल्ला इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

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 पहली तीन लोकसभाओं में सांसद मनोनीत होने के बाद वर्ष 1967 में चौथी लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो नैशनल कांफ्रैंस प्रत्याशी बक्शी गुलाम मोहम्मद ने श्रीनगर-बडग़ाम सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1971 में पांचवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में शमीम अहमद शमीम निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, जबकि 1977 में नैशनल कांफ्रैंस के टिकट पर बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला ने विजय हासिल कर छठी लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 

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वर्ष 1980 में सातवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में नैशनल कांफ्रैंस के उम्मीदवार डा. फारूक अब्दुल्ला चुनाव जीते, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद जब उपचुनाव हुए तो भी नैशनल कांफ्रैंस के ही अब्दुल राशिद काबुली ने बाजी मारी। फिर 1984 में आठवीं और 1989 में नौवीं लोकसभा के लिए लोगों ने नैशनल कांफ्रैंस के उम्मीदवारों क्रमश: अब्दुल राशिद काबुली और मोहम्मद शफी भट का चुनाव किया। 1991 में राज्य में हालात खराब होने के कारण 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव नहीं हो पाए।  1996 में 11वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में श्रीनगर-बडग़ाम के लोगों ने पहली बार नैशनल कांफ्रैंस के बजाय कांग्रेस को तरजीह दी और कांग्रेस प्रत्याशी गुलाम मोहम्मद मीर मगामी सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद बारी शेख अब्दुल्ला के पौत्र उमर अब्दुल्ला को राजनीति में लॉन्च करने की थी तो वर्ष 1998, 1999 एवं 2004 में उमर अब्दुल्ला लगातार तीन बार क्रमश: 12वीं, 13वीं एवं 14वीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गए। 

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वर्ष 2004 में उमर अब्दुल्ला ने पी.डी.पी. नेता गुलाम नबी लोन को पराजित किया जो बाद में राज्य के कृषि मंत्री बने। वर्ष 2009 में उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद डा. फारूक अब्दुल्ला 15वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कूदे और राज्य में मंत्री रहे पी.डी.पी. उम्मीदवार शिया नेता मौलवी इफ्तिखार हुसैन अंसारी को शिकस्त देकर संसद पहुंचे। 

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वर्ष 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम नैशनल कांफ्रैंस के लिए अच्छे नहीं रहे। इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर की अन्य 5 सीटों के साथ नैशनल कांफ्रैंस अपनी परम्परागत श्रीनगर-बडग़ाम सीट को बचाने में भी नाकाम साबित हुई। इस बार पूर्व मंत्री एवं पी.डी.पी. प्रत्याशी तारिक हामिद कर्रा ने डा. फारूक अब्दुल्ला को शिकस्त दे दी, लेकिन पी.डी.पी. नेतृत्व द्वारा भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करने से नाराज कर्रा ने सांसद पद से इस्तीफा देकर पी.डी.पी. को अलविदा कर दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। 

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वर्ष 2017 में जब श्रीनगर-बडग़ाम संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ तो नैशनल कांफ्रैंस एवं कांग्रेस के बीच समझौता हो गया, जिसके चलते नैशनल कांफ्रैंस प्रत्याशी डा. फारूक अब्दुल्ला का चुनाव में जीत हासिल करना आसान हो गया। उधर, खूंखार आतंकवादी सरगना हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की सुरक्षा बलों के हाथों मौत के बाद कश्मीर घाटी में बने तनावपूर्ण वातावरण में अलगाववादी संगठनों द्वारा किए गए चुनाव बहिष्कार के आह्वान का भी काफी असर दिखा, जिसका सीधा लाभ डा. फारूक अब्दुल्ला को मिला। इस प्रकार, मामूली वोटों से ही नहीं, लेकिन डा. अब्दुल्ला पी.डी.पी. प्रत्याशी नाजिर अहमद खान को शिकस्त देने में कामयाब हो गए। 
 
 

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